आज हम इस्लामी इतिहास के हवाले से यह समझाने की कोशिश करे गे की और कैसे इस्लामिक पवित्र स्थानों को अब्द अल वहाब और इस्लामी ख़लीफ़ा ने नष्ट करने की साज़िश की और सऊद परिवार की इसमें क्या भूमिका थी जो ब्रिटिश सरकार के सैन्य समर्थन के द्वारा बनाई गई एक सलफ़ी उन्माद की पीठ पर नज्दी सामंती प्रभुओं सऊद परिवार के द्वारा कब्जा किया गया।
इतिहासकारों की माने तो सऊद १४५० ई. के आसपास नज्द में बसे थे और वह अन्ज़ा जनजाति के थे और मूल रूप से यहूदियों धर्म के माननेवाले चतुर सामंती प्रभुओं में थे। किंग फैसल (१९०६-१९७५) जिसने अरब पर १९६४ – १९७५ के बीच शासन किया और अपने यहूदी मूल के होने की पुष्टि की। सितम्बर १७, १९६९ को वाशिंगटन पोस्ट को दिए एक साक्षात्कार में, किंग फैसल ने कहा की “हम सऊदी परिवार यहूदियों के चचेरे भाई हैं” किंग फैसल बयान की व्याख्या का आधार समझने के लिये यह जानना आवश्यक होगा की यहूदियों के पैगंबर इसहाक वंश (علیھ السلا م) के हैं और अरबों के पैगंबर इस्माइल के वंशज (علیھ السلا م) होते हैं, इस तरह वे रिश्ते में चचेरे भाई हुए।
पैगंबर मोहम्मद के आगमन के समय (صلى الله عليه و آله وسلم) काबा बुतपरस्त मूर्ति भक्तों के कब्जे में था और इतिहासकारो के अनुसार ३६० मूर्तियों की पूजा सम्पन होती थी जो काबा के चारो ओर स्थित थी ऐसी ही स्तिथि आज भी है काबा के चारो और भव्य इमारते होटल और मॉल मौजूद है। सलफ़ी / वहाबी हुकूमत के पश्चात अपने को ईश्वर का आदर्श भग्त कहने वाले वहाबियों ने मूर्ति पूजा और क़ुरान की हदीसो को धता बता कर क़ुरान और अल्लाह को ही अपना सिद्धांत माना। १९२५ ई में इस्लामिक गढ़, मक्का और मदीना की भव्य मस्जिदो पर कब्ज़ा कर इस्लामिक इस्लामी शिक्षाओं के रूप में दुनिया में सलफ़ी / वहाबी सिद्धांतो का प्रचार और प्रसार शुरू कर दिया जो आज तक चालू है। सऊदी शाही खानदान जिनके पुरखे यहूदी थे उन्हों ने इस्लामिक धरोहर को ज़मींदोज़ कर उनकी पहचान ख़त्म कर दी या खत्म करने का भरसक प्रयास किया ताकि नये धर्म की बुनियाद मज़बूत हो सके। इस प्रकार एक नया धर्म वहाबी मसलक वजूद में आया।
इब्न अब्द अल वहाब (१७०३-१७९९), का जन्म नज्द के उययना नामक शाहर में १७०३ में हुआ था वह बानो तमीम जनजाति के थे। शुरुआती दिनों में इनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर अपने पिता की देख रेख में हुई उसके पश्चात आगे की पढ़ाई के लिए मक्का और मदीना चले गये जो इस्लामिक शिक्षा का केन्द्र माना जाता था। अध्यन की समाप्ति के उपरांत वह वहाँ से बसरा, दक्षिणी इराक चले गए तथा बसरा में कुछ समय बिताया। इतिहासकारो की माने बसरा में आवास के दौरान इब्न अब्द अल वहाब ने इस्लाम धर्म के खिलाफ विद्रोह कर अपनी नई सोच विकसित किया गया था। १७४० ई. में वह अपने पैतृक शहर उययना लौटे उस समय तक अपनी विचारधारा को वह पूरी तरह से इस्लाम के खिलाफ एक विद्रोही के रूप में तब्दील कर दिया था। वहाब के अनुसार अरब प्रायद्वीप के मुसलमानों और दुनिया की उस की पूरी आबादी मुश्रिकीन है का दावा कर अपनी नई विचारधारा का प्रचार शुरू कर दिया है और उनका कहना था की उनके द्वारा दिए गए उपदेश ही असली इस्लाम का पैगाम है।
शुरुआती दिनों में अब्दअल वहाब अपने नए धर्म में उस्मान इब्ने मुअम्मार को अपने साथ ले कर अपने पैतृक गॉव उययना में अपने नये धर्म का प्रचार और प्रसार किया और एक फिक्र पैदा की उसमे सफलता के बाद बाकि बचे लोगो को बलपूर्वक अपने साथ आने के लिये बाध्य किया जिसमे उसे सफलता प्राप्त हुई। अब्दल वहाब की पहली आंतकवादी घटना को अपने साथियो के साथ अंजाम दिया। एक रात को इब्ने मुअम्मर के साथ अपने कुछ वफादारों की मदद से रसूल के एक साहेबा हज़रात ज़्याद इब्ने अल खत्ताताब की कब्र को नष्ट कर दिया और गिफ्तारी के अंदेशे को देखते हुए अपने साथियो के साथ उययना से भाग गये।
उययन से भागने के पश्चात अब्दाल वहाब ने मोहम्मद इब्न सऊद जो मध्ययुगीन काल में सामंती प्रभुओं में से एक था और सत्ता, पैसा और औरतो का शौकीन ज़मीदार था जिसका प्रभुत्व डिरिय्या नामक झेत्र में बहुत अधिक था और वह नज्द कबीले से सम्बन्ध रखता था, ने इब्न अब्द अल वहाब को संरक्षण दिया था और जल्दी से वहाबी पर आधारित अरब प्रायद्वीप में एक राज्य के गठन की संभावना की कल्पना की जाने गयी तथा, नए धार्मिक सिद्धांत के प्रचार और प्रसार की ज़िम्मेदारी इब्न अब्दअल वहाब ने संभाली।
इब्न अब्द अल वहाब और मोहम्मद इब्न सऊद के बीच एक आंतरिक गठबंधन स्थापित हुआ जो इस्लाम की मूल विचारधारा से भिन्न था तथा वहाबी विचाधारा पर आधारित एक राज्य की स्थापना के लिए एक राजनीतिक साजिश के तहत काम की शुरुआत की गयी जो वर्ष १७४४ ई में अस्तित्व में आया और पहली बार सऊदी राज्य की नीव रखी गयी। इस गठबंधन को और मज़बूती देने की गर्ज़ से सऊद ने अपनी बहन की शादी अब्दुल वहाब से सम्पन करा दी। गठबंधन की शर्तों के अनुसार, इब्न अब्द अल वहाब जिसका काम नए धर्म में लोगों को बदलने और आम जनता में धार्मिक कट्टरता बना था धार्मिक मामलों के लिए वास्तविक मंत्री बने तथा योजना के अनुसार सऊद को यह ज़िमेदारी सौपी गयी की वह राज्य की सीमा का विस्तार करे जिसमे वह सफल हुआ। अब नया राज्य पूर्णतः वहाबी विचारधारा को समर्पित राज्य की शक्ल में वजूद में आया जिसमे धार्मिक कट्टरपंथियों का इस्तेमाल किया गया।
१९० सालो (१७४४ -१९३२) के बीच, सऊद और अब्दुल वहाब की सयुंक्त सेना ने अरब प्रायद्वीप के सभी मुस्लिम शासकों के साथ युद्ध लड़े और विजय प्राप्त की सन १९३२ में अब्दुल अजीज सऊदी ने एक नवगठित राज्य की स्थापना की तथा स्वम् को उस राज्य के राजा के रूप में घोषित किया तथा अरब प्रायद्वीप से इस्लाम और मुसलमानों के सफाए में अंततः सफल रहे। अब अरब को एक नया नाम मिला सऊदी अरबिया। अब्दुल वहाब इब्राहिम अल शम्मारी की पुस्तक, ‘वहाबी आंदोलन: सत्य और रूट्स’, के अनुसार किंग अब्दुल अजीज इब्न सउद, पहले सउदी राजशाही जो १९३२ में स्थापित हुई उनके वंशज यहूदी मूल के थे और वह मोरडेचे बिन इब्राहिम बिन मोइशे जो बसरा के एक यहूदी व्यापारी के उत्तराधिकारी थे।
यह कहना गलत न होगा की इस्लामिक आतकवाद का पोषक सऊदी अरब अपनी वहाबी विचाधारा को स्थापित करने हेतु दुनिया के तमाम सेक्युलर देशो में अपने गिरोह के माध्यम से वहाबी विचारधारा के ख़िलाफ़ लोगो की निर्मम हत्या करवा रहा है और दुनिया के प्रभुत्वशाली देशो का मूक समर्थन प्राप्त है।
(लेखक विशिष्ट चिंतक और फेस बुक की दुनिया का विश्वसनीय वयक्तित्व हैं )