अली हसनैन आब्दी
भारत में बीते दो दशकों में शराब की खपत पचपन फीसदी बढ़ी है और अब नवकिशोर और महिलाओं में भी इसकी लत जोर पकड़ रही है इस खुलासे ने स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चिंता बढ़ा दी है.
अब शराब पीने की बढ़ती प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की मांग तेज हो रही है. “लगभग तीस फीसदी भारतीय अल्कोहल का सेवन करते हैं. इनमें चार से 13 फीसदी लोग तो नियमित रूप से शराब का सेवन करते हैं. उनमें से आधे लोग खतरनाक पियक्कड़ों की कतार में शुमार हैं.
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Era Medical College Lucknow के ” डॉ०सलमान मेरे मित्र कहते है “मुंह, लीवर और स्तन समेत कैंसर की कई किस्मों का संबंध शराब के सेवन से है.” सामाजिक कार्यकर्ता कहते हैं, “आश्चर्य की बात यह है कि इन आंकड़ों के बावजूद सरकारें इस गंभीर मामले पर कोई ध्यान नहीं दे रही हैं.”
विशेषज्ञों का कहना है कि दूसरे उत्पादों के बहाने टीवी चैनलों और अखबारों में शराब की विभिन्न किस्मों के लुभावने विज्ञापन दिखाए और छापे जा रहे हैं. लेकिन किसी भी सरकार ने इन पर अंकुश लगाने में दिलचस्पी नहीं दिखाई है. इन लुभावने विज्ञापनों से आकर्षित होकर कम उम्र के किशोर भी शराब की बोलत को मुंह लगा रहे हैं. यही नहीं, बीते 10 वर्षों में किशोरियों में भी तेजी से शराबखोरी बढ़ी है. विशेषज्ञों की राय में कम उम्र के युवकों के साथ युवतियों में बढ़ती शराबखोरी गहरी चिंता का विषय है. युवतियों को होने वाली विभिन्न बीमारियों का प्रभाव उनकी संतान पर भी पड़ता है. लिहाजा, बढ़ती शरबाखोरी के दूरगामी नतीजे हो सकते हैं.
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कई तरह के खतरे
शराब के बढ़ते सेवन से स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान के अलावा भी कई तरह के खतरे हैं. शराब का सेवन दिल, दिमाग, लीवर और किडनी की दो सौ से भी ज्यादा बीमारियों को न्योता देता है. कई मामलों में यह कैंसर का भी प्रमुख कारण बन जाता है. कम उम्र के किशोरों में शराब पीने की बढ़ती प्रवृत्ति का उनके भविष्य और रोजगार पर सीधा असर पड़ता है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि शराब का बढ़ता सेवन समाज के हर तबके के लोगों को समान रूप से प्रभावित करता है. शराब की बढ़ती खपत का अर्थव्यवस्था से भी संबंध है.
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शराब की हकीकत: ज्यादा शराब पीने का 200 से भी अधिक बीमारियों से संबंध है.
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि शराब पीकर काम पर आने वाले कर्मचारियों की वजह से उत्पादकता को जो नुकसान होता है उससे भारत जैसे किसी भी विकासशील देश को सालाना उत्पादन में लगभग एक फीसदी नुकसान होता है. और यह एक मोटा अनुमान है “किशोरों में बढ़ते शराब का सेवन का दूरगामी असर हो सकता है. इससे उनके भावी जीवन की दशा-दिशा तो तय होती ही है, जीवन में उनको कई तरह की बीमारियों से भी जूझना पड़ता है.”
कैसे उपाय
विशेषज्ञों का कहना है कि शराब की बढ़ती खपत पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र को एक राष्ट्रीय नीति बनानी चाहिए. उनकी दलील है कि शराब की बिक्री से मिलने वाले भारी राजस्व ने ही सरकार के कदमों में बेड़ियां डाल रखी हैं. लेकिन महज राजस्व के लिए देश के भविष्य से खिलवाड़ नहीं किया जा सकता.
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शराब और सिगरेट की बिक्री से होने वाली आमदनी को उसकी वजह से होने वालेचंद रुपए के लालच को छोड़ कर सरकार भावी पीढ़ी और देश को शराब के कुप्रभावों से बचाने की दिशा में कोई ठोस पहल करेगी? विशेषज्ञों के मुताबिक, फिलहाल तो इसकी उम्मीद कम ही है क्या के सत्ताधारी दलकी कोई निति नही है बस राजनिति है के सत्ता में कैसे बने रहे।
(लेखक अली हसनैन आब्दी एक समाजिक कार्यकरता हैं )