इस से पहले कि हम अंसारी साहब और राष्ट्रवाद पर कुछ लिखें यह बात साफ़ कर देना बहुत ज़रूरी है कि इतिहास में राष्ट्रवाद की जड़ें किस सोच और संस्कृति में मिलती हैं और इस कारण हमको हिंदुस्तान की अनोखी परम्परा को कैसे समझना चाहिए।
सब ही को मालूम है के अट्ठारवीं सदी से पहले राष्ट्र और क़ौम के माने आज की व्याख्या से बिलकुल अलग थी। यह सोच यूरोप के जंगी माहौल से उभरी जब फ्रांसीसियों ने जर्मनों पर अपना सिक्का जमाया। यूरोप में राष्ट्रवाद की जड़ें वहाँ की पुरानी दुश्मनियों का नतीजा थीं और हम सब को पता है कि बीसवीं सदी में उस ही जर्मनी में यहूदियों पर नाज़ी पार्टी और हिट्लर ने कितने ज़ुल्म ढाए! हिंदुस्तान में यह सोच अंग्रेज़ों के साथ आयी और उन्होंने हमारे समाज को उस ही तरह बाटना शुरू किया जैसे उन्होंने यूरोप में बाटा था।
भाषा,धर्म, परम्परा, संस्कृति, इतिहास और हद है के जात पात की बिना पर लम्बी लम्बी फेहरिस्त बन ने लगीं। इन को अंग्रेज़ी में सेन्सुस कहते थे। सामने की बात है के अंग्रेज़ों ने ये किसी अच्छी नियत की वजह से नहीं किया था बल्कि इसलिए किया था के वो आसानी से राज कर सकें। इस के ख़िलाफ़ हमारे वरिष्ठ और बुज़ुर्ग लीडरों ने एकता का परचम बुलंद किया और यह कोई नयी बात नहीं थी।
आज हमारे देश में राष्ट्रवाद का वो तसव्वर आम किया जा रहा है जो जर्मनी के उस ज़हरीली राष्ट्रवाद से ज़्यादा मिलता है जिसकी वजह से ६० लाख से अधिक यहूदी मौत के घाट उतार दिए गये थे। सवाल यह उठता है कि हम को आज राष्ट्रवाद को कैसे समझना चाहिये। हिंदुस्तान की अनोखी विविधता का तक़ाज़ा यह है के हम कुछ नई सोच और कुछ नई फ़िकरें आम करने की कोशिश करें। अब आप ज़रूर सोच रहे होंगें कि इस सब का हामिद अंसारी साहिब के बयान से क्या सम्बंध है?
जनता या क़ौम एक परिवार की तरह होती है। जैसे कि हर व्यक्ति को पता ही होता है एक परिवार में हर शख़्स की अपनी तबियत होती है और अपनी एक ख़ास पहचान होती है। इस का नतीजा यह होता है कि मामूली सी मामूली बात से ले कर और बड़े से बड़े विषयों पर लोगों में इतना बुनियादी फ़र्क़ पैदा हो जाता है कि वह एक दूसरे से बात चीत करना बंद कर देते हैं। इस के बावजूद अगर बुनियादी तौर पर लोगों के रिश्ते और संबंघ प्यार और मुहब्बत पर क़ायम होते हैं और उनकी नियतें ठीक होती हैं तो कुछ दिन बाद बातचीत का सिलसिला फिर से शुरू हो जाता है। कभी कभी तो ऐसा भी होता है कि एक ही परिवार के लोगों की सोच में इतना बड़ा अंतर होने के बावजूद वह अपने व्यक्तिगत नज़रियों को रिश्ते पर असर नहीं करने देते।
अब हम सब को पता ही है के परिवारों का एक दूसरा पहलू यह होता है के बच्चों के रुझान और उन की तबियतों में कभी कभी ज़मीन आसमान का फ़र्क़ होता है। सच तो यह है के अपने माँ और बाप से हर बच्चे का अपना एक अनोखा रिश्ता होता है और यह भी एक वास्तविकता है कि जो माँ और बच्चों में मोहब्बत और प्यार का रिश्ता होता है वो उतनी गहराई के साथ बाप से नहीं होता है। बात करने के तरीक़े अलग होते हैं और माँ अक्सर हर बच्चे की छोटी सी छोटी आदत और पसंद को इतनी अच्छी तरह जानती है के वह बच्चे के कुछ कहने से पहले ही उनकी बात समझ जाती है।
माँ तो एसी होती है कि वह अपने बच्चों के नख़रे को ना सिर्फ़ बर्दाश्त करती है परंतु उनकी बुरी बुरी बातों पर भी पर्दा डालने की कोशिश करती है। माँ का प्यार तो ऐसा होता है कि वह अपने बच्चों की कमज़ोरियों के लिये भी बहाने करने की कोशिश करती है। यह भी एक सच है कि असली मोहब्बत और प्यार का इज़हार कभी कभी शिकवा और शिकायत के ज़रिये होता है। आप किसी भी धर्म और किसी भी मज़हब की किताबें पढ़ेंगे तो आप को पता चलेगा कि बड़े बड़े धर्म गुरुओं ने भगवान से अपनी वफ़ादारी और नज़दीकी शिकवे के ही ज़रिये दिखाई। असल में तो यूँ कहना चाहिये के कोई भी व्यक्ति शिकवा उस ही से करता है जिस से वह बेतकल्लुफ़ होता है जिस से उसको बेलौस मुहब्बत होती है- जिस से उसके घरेलू सम्बंध होते हैं।
अब आप यही मिसाल एक परिवार के बजाए एक क़ौम के लिये इस्तेमाल कीजिये । हमारे देश की मुख़्तलिफ़ क़ौमें एक परिवार की तरह ही हैं और हर क़ौम उस परिवार के एक बच्चे की तरह है। हर क़ौम अपनी माँ से एक अनोखा रिश्ता रखती है और जब अपने प्यार का ज़िक्र करती हैं तो वह उनकी विशेष भाषा में होती है। जैसे किसी एक बच्चे को अपनी माँ की कोई अदा पसंद होती है तो किसी और को अपने माँ के हाथ की पकाई हुई चीज़ पसंद आती है। शायद किसी को उनकी आवाज़ से मुहब्बत हो तो किसी और को उन का हंसने का तरीक़ा।
अक्सर जैसे भाइयों और बहनों में आपसी झगड़ते भी हैं और यूँ ही क़ौमें भी आपस में लड़ती हैं लेकिन हमको सवाल ये पूछना चाहिये कि जब दो बच्चे आपस में लड़ते हैं तो दोनों ही अपने माँ बाप से इंसाफ़ की उम्मीद रखते हैं। इंसान की फ़ितरत कुछ ऐसी है कि वो पहले अपनी माँ ही के पास जाता है। अब आप साफ़ साफ़ बताइये कि अगर माँ अपने किसी एक बच्चे को नज़र अंदाज़ कर दे या उस से बेरुख़ी अपनाये तो उस बच्चे के दिल पर क्या गुजरेगी।
असल में तो शायद ही दुनिया में कोई ऐसी माँ होगी, क्यूँकि माँ के भी दिल में अपने हर बच्चे के लिये कूट कूट कर मोहब्बत भरी होती है।हिंदुस्तान में हम अपने बच्चों को सिखाते हैं कि भारत हमारी माँ की तरह है तो क्या हमारी माँ हमारी मुश्किलें और हमारी शिकायतें नहीं सुनेगी? आख़िर और सामने कि बात तो यह है कि कोई भी बच्चा यह दावा नहीं करता के वह ही माँ की बात समझ सकता है! आज हमारे देश में एक संगठन है जो अपने को भारत माता या मादरे वतन का ठेकेदार समझता है। भले कोई बच्चा अपनी माँ की ठेकेदारी कर सकता है?
जिस तरह बच्चे अपनी माँ के पास जाते हैं वैसे ही जनता अपनी माँ यानी देश के शासन प्रशासन के पास जाती है क्यूँकि उनको यह उम्मीद होती है कि उनको इंसाफ़ मिलेगा। अगर ऐसा नहीं होता है तो फिर लोगों का भरोसा ख़त्म हो जाता है। जब यह होता है तो फिर एक दुखी बच्चे की तरह वो अपना दर्द, शिकवा और शिकायत के ज़रिये औरों को सुनाता है। याद रहे शिकवा करना मोहब्बत का सबूत है ना के ग़द्दारी की दलील । अगर शिकवा करने पर ही पाबंदी और रोक लगा दी जाये। तो फिर उस क़ौम के लोगों में दुख, अफ़सोस, तकलीफ़ और डर पैदा हो जाते हैं। इस सूरते हाल में कुछ भटके हुए गुमराह लोग ग़ैर क़ानूनी राहें भी अपना लेते हैं। यहाँ एक बार फिर परिवार की मिसाल ज़रूरी है क्यूँकि अगर परिवार के लोगों में आपस में मोहब्बत और प्रेम होती है तो फिर ऐसा परिवार यकजुट होता है।
आज हमारे देश में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो यहाँ की एकता और भाईचारे को जड़ से ख़त्म कर देना चाहते हैं। हिंदुस्तान में हमारे सामने दो रास्ते हैं: पहला रास्ता यह है के हम ये मान के चलें कि यहाँ के सब ही नागरिक एक परिवार की तरह हैं। दूसरी राह यह है के किसी एक समुदाय, गुट,या दल के लोग अपने को राष्ट्रवाद के ठेकेदार समझ कर अपनी ही सोच औरों पर थोपने की कोशिश करें। पहले वाले रास्ते में कठिनाएँ और बाधाएं होंगी। और हमको कभी कभी ऐसे लोगों को भी साथ ले के चलना होगा जिन से हम राजनैतिक या व्यक्तिगत तौर पर सहमत नहीं हैं।
हमको बार बार याद रखना होगा कि यह हमारे भाई और बहन हैं।दूसरा रास्ता सिर्फ़ नफ़रत और हिंसा का रास्ता हैं क्यूँकि हम दूसरों को अपना तब ही मानेंगे जब वह हमारे जैसे हो जाते हैं।
आप ख़ुद सोचें कि अगर कोई माँ अपने बच्चे से कहे कि मुझसे इस ख़ास तरीक़े से मोहब्बत करो तो बच्चे के दिलो दिमाग़ पर क्या गुज़रेगी। याद रहे के शिकवा और शिकायत करना एक तरह से मोहब्बत करने का सबूत है और हम को आज उन तमाम लोगों को गले से लगाना चाहिये जो देश से प्रेम और मोहब्बत करते है चाहे उनका प्रेम करने का तरीक़ा अनोखा क्यूँ ना हो!
साभार :यूथ की आवाज़ डॉट कॉम