वाशिंगटन: अमेरिकी रक्षा विभाग का कहना है कि अमेरिका अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ अधिक कोई सैन्य अभियान नहीं कर रहा, क्योंकि वह तालिबान को युद्धग्रस्त देश में शांति की स्थापना के प्रयासों में महत्वपूर्ण भागीदार समझता है।
अमेरिकी रक्षा विभाग ‘पेंटागन’ के प्रवक्ता और अमेरिकी नौसेना के कैप्टन जेफ डेविस ने न्यूज ब्रीफिंग के दौरान कहा कि अमेरिका अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ कोई आतंकवाद विरोधी आपरेशन नहीं कर रहा।
उन्होंने कहा कि हम तालिबान को, अफगान सुलह प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भागीदार समझते हैं, इसलिए उन्हें गतिशील रूप से लक्षित नहीं किया जा रहा। पेंटागन के प्रवक्ता ने सीरिया और इराक में सक्रिय चरमपंथी संगठन आईएस की बात करते हुए कहा कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान में कुछ व्यक्तिगत समूह आईएस नाम का उपयोग करके आतंक फैलाना चाहते हैं, हालांकि इस आतंकवादी संगठन के क्षेत्र में बतौर संस्था, कोई उपस्थिति नहीं है।
उनका कहना था कि आईएस इराक और सीरिया में पकड़ मजबूत है, लेकिन पाकिस्तान और अफगानिस्तान में जो आतंकवादी संगठन के प्रतिनिधित्व का दावा कर रहे हैं, उनका केंद्रीय आईएस से कोई संबंध नहीं है।
जेम्स डेविस ने कहा कि अमेरिका आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान की भरपूर मदद कर रहा है।उनका कहना था कि अमेरिका पिछले साल अफगानिस्तान में अपना सैन्य अभियान समाप्त कर चुका है और अब देश में शांति स्थापित करने के लिए केवल अफगान बलों की मदद कर रहा है।
गौरतलब है कि दशकों तक अफगान तालिबान के अमीर रहने वाले मुल्ला उमर की कुछ महीने पहले मौत की पुष्टि के बाद मिला मंसूर को तालिबान का नया अमीर नियुक्त किया गया था।
मुल्ला उमर की मौत को दो साल तक छुपाए रखने ाोरिीद पर उनके नाम से जारी होने वाले बयान पर तालिबान समूह गुस्सा पाई जाती थी।
इसके अलावा कथित पाकिस्तानी प्रतिष्ठान के पास समझे जाने वाले मिला मंसूर लेने में जल्दबाजी पर भी सवालिया निशान उठाए गए थे।
तालिबान में नेतृत्व को लेकर मतभेद के बाद इस सप्ताह दक्षिण पश्चिमी अफगान प्रांत फराह में अलग होने वाले तालिबान गुट ने एक बड़े जरगे में मिला रसूल मुल्ला को अपना नया ‘सुप्रीम कमांडर’ नियुक्त किया था।
गौरतलब है कि अफगानिस्तान में 13 वर्षीय युद्ध खत्म करने के लिए अफगान सरकार और तालिबान के बीच वार्ता का पहला दौर लगभग 4 महीने पहले हुआ था।वार्ता की पाकिस्तान, अमरीका, चीन और संयुक्त राष्ट्र ने समर्थन किया था और वार्ता का पहला दौर पाकिस्तान की मेजबानी पाकिस्तान में मरी में हुआ था।
हालांकि इसके बाद अफगान तालिबान में मतभेद और गुट बंदियों के बाद वार्ता गतिरोध का शिकार हैं।