मुंबई। कैंसर पर विजय हासिल करने के आठ साल बाद भावुक युवराज सिंह ने सोमवार को उतार-चढ़ाव से भरे अपने करियर को अलविदा कहने की घोषणा की जिसमें उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि भारत की 2011 की विश्व कप जीत में अहम योगदान रहा। वे इंडियन प्रीमियर लीग में नहीं खेलेंगे।
प्रतिभा के धनी इस करिश्माई खिलाड़ी को सीमित ओवरों की क्रिकेट का दिग्गज माना जाता रहा है लेकिन उन्होंने इस टीस के साथ संन्यास लिया कि वे टेस्ट मैचों में अपेक्षित प्रदर्शन नहीं कर पाए। बाएं हाथ के इस बल्लेबाज ने हालांकि संन्यास लेने से पहले कई बार परिस्थितियों को अपने पक्ष में मोड़ने के प्रयास किए।
इस 37 वर्षीय क्रिकेटर ने यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि मैंने 25 साल 22 गज की पिच के आसपास बिताने और लगभग 17 साल अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने के बाद आगे बढ़ने का फैसला किया है। क्रिकेट ने मुझे सब कुछ दिया और यही वजह है कि मैं आज यहां पर हूं।
For cricket fans and Indian politics buffs: six lessons that @INCIndia can learn from the way England's cricket team rebuilt itself from a disastrous 2015 World Cup campaign to become favourites in 2019: https://t.co/2TBj18Butz
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) June 9, 2019
उन्होंने कहा कि मैं बहुत भाग्यशाली रहा कि मैंने भारत की तरफ से 400 मैच खेले। जब मैंने खेलना शुरू किया था तब मैं इस बारे में सोच भी नहीं सकता था।
इस आक्रामक बल्लेबाज ने कहा कि वह अब ‘जीवन का लुत्फ’ उठाना चाहता है और बीसीसीआई से स्वीकृति मिलने पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न टी20 लीग में फ्रीलांस खिलाड़ी के रूप में खेलना चाहता है, लेकिन अब वे इंडियन प्रीमियर लीग में नहीं खेलेंगे।
Players will come and go,but players like @YUVSTRONG12 are very rare to find. Gone through many difficult times but thrashed disease,thrashed bowlers & won hearts. Inspired so many people with his fight & will-power. Wish you the best in life,Yuvi #YuvrajSingh. Best wishes always pic.twitter.com/sUNAoTyNa8
— Virender Sehwag (@virendersehwag) June 10, 2019
युवराज ने भारत की तरफ से 40 टेस्ट, 304 वनडे और 58 टी-20 अंतरराष्ट्रीय मैच खेले। उन्होंने टेस्ट मैचों में 1900 और वनडे में 8701 रन बनाए। उन्हें वनडे में सबसे अधिक सफलता मिली। टी20 अंतरराष्ट्रीय में उनके नाम पर 1177 रन दर्ज हैं।
उन्होंने कहा कि यह इस खेल के साथ एक तरह से प्रेम और नफरत जैसा रिश्ता रहा। मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता कि वास्तव में यह मेरे लिए कितना मायने रखता है। इस खेल ने मुझे लड़ना सिखाया। मैंने जितनी सफलताएं अर्जित की उससे अधिक बार मुझे नाकामी मिली पर मैंने कभी हार नहीं मानी।
बाएं हाथ के इस बल्लेबाज ने अपने करियर के तीन महत्वपूर्ण क्षणों में विश्व कप 2011 की जीत और मैन ऑफ द सीरीज बनना, टी20 विश्व कप 2007 में इंग्लैंड के खिलाफ एक ओवर में 6 छक्के जड़ना और पाकिस्तान के खिलाफ लाहौर में 2004 में पहले टेस्ट शतक को शामिल किया। विश्व कप 2011 के बाद कैंसर से जूझना उनके लिए सबसे बड़ी लड़ाई थी। उन्होंने कहा कि मैं इस बीमारी से हार मानने वाला नहीं था।
इसके बाद हालांकि उनकी फार्म अच्छी नहीं रही। उन्होंने भारत की तरफ से आखिरी मैच जून 2017 में इंग्लैंड के खिलाफ वन-डे के रूप में खेला था। उन्होंने अपना अंतिम टेस्ट मैच 2012 में खेला था। इस साल आईपीएल में वे मुंबई इंडियन्स की तरफ से खेले लेकिन उन्हें अधिक मौके नहीं मिले।