असद जाफर :: शब्दकोशीय अर्थ में मदरसा शब्द अरबी भाषा का शब्द है जिससे आभास होता है की अमुक स्थान शिझा का एक केन्द्र है यानि वह एक पाठशाला / स्कूल है जहां मुसलमानो के बालको / किशोरों को इस्लाम और क़ुरान की शिझा दी जाती है। अरबी भाषा के अनुसार मदरसे में पढ़ने वालो को तालिब-ए-इल्म यानि विद्यार्थी कहा जाता है। अफगानिस्तान में रूसियों के ख़िलाफ़ तालिब-ए-इल्म का संघर्ष और अन्त में सत्ता आसीन होने के बाद आतंकवाद का साथ मदरसो और उसमे पढ़ने वाले तालिब-ए इल्म पर सवालिया निशान लगता है और बहुत सारे देश जिसमे पाकिस्तान भी शामिल है मदरसो और मदरसो में दी जाने वाली तालीम पर नज़र रखने हेतु उनका पंजीकरण आनिवार्य कर दिया है। यह भी देखा गया है की इन मदरसो की आड़ में दीनी तालीम आपसी द्वेष फैलाने के मकसद से दी जा रही है जो चिंता का विषय है।
मदरसे एक बेहतरीन बिज़नेस आज हर माँ बाप अपने होशियार बच्चे को अच्छी तालीम देने की नियत से अच्छे स्कूल में शिझा देने को आतुर दिखाई देता है और मंदबुद्धि बच्चे की लिए मदरसे का चयन। वह मंदबुद्धि आगे चल कर कौमी और दिनी रहरुमा बन किसी मस्जिद में पेशेइमाम या क़ुरान पढ़ाने का पेशा अख्तियार कर लेता है। जिससे मदरसो की ज़रूरत सदैव ही है और सरकारे अच्छी माली मदद भी देती रहती है। ndtv के अनुसार यूपी के कई ज़िलों में 118 मदरसे ऐसे हैं, जो ज़मीन पर नहीं, बल्कि सरकारी फाइलों में ही चल रहे हैं। मदरसों के नाम पर इन्हें सरकार से करोड़ों रुपये सालाना मिलते हैं। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में पिछले माह हुए साम्प्रदायिक दंगों की जांच के लिए सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी (सपा) की पहल पर सरकार द्वारा गठित मंत्रियों की ‘सद्भावना समिति’ ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि मदरसे अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए दंगों के कारण विस्थापित लोगों को अपने गांव वापस नहीं जाने देना चाहते। दंगा पीड़ितों के लिए बनाए गए ज्यादातर राहत शिविर मदरसों में चल रहे हैं। राहत के नाम पर उन्हें बाहर से खाद्यान्न तथा धन के रूप में मदद दी जा रही है। ऐसे में वे अपने निजी लाभों के लिये विस्थापित लोगों को अपने गांव वापस नहीं जाने देना चाहते, ताकि राहत शिविर बंद नहीं हों।
मदरसो में आने वाले बच्चे या तो गरीबी रेखा के नीचे के होते है उन परिवारो से होते है जिन्हे अपने बच्चो को अच्छे स्कूल में तालीम देने का समर्थ नहीं होता या उनकी सोच अपने बच्चो को सामान्य स्कूलों में भेजने की इजाज़त नहीं देती वह लोग तालीम के लिये अपने ज़िले या तहसील के मदरसो में बच्चो का दाखिला करवा देते है। ऐसा नहीं है सारे मदरसे केवल धार्मिक ज्ञान दे रहे हो कुछ मदरसो ने धार्मिक ज्ञान के अलावा कंप्यूटर और दूसरे वोकेशनल कोर्स को भी इसमें सम्मिलित लिया है जो अच्छी पहल है। यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है की इस प्रकार के मदरसो की संख्या बहुत कम है।
जहाँ तक पढ़ाई के स्तर का सवाल है वह सामान्य स्कूलों से काफी कम है और उसे ऊपर लाया जा सके तो बेहतर होगा वह से निकलने वाले बच्चे दूसरे बच्चो के समकक्ष
ज्ञान अर्जित कर विभिन्न प्रतियोगिता में बराबर से हिस्सा ले सकने में सक्षम होगे।
(लेखक विशिष्ट चिंतक और फेस बुक की दुनिया का विश्वसनीय वयक्तित्व हैं )