- नई सिम्त
एक पल के लिए मिला उससे लेकिन ,
लगा ऐसे कि एक जिंदगी जी लिया।
अब कोई शिकवा नहीं बिछड़ने का,
मर मर केअब तक बहुत जी लिया।
जैसे चाँदनी रात में फैला हुआ नूर ,
वो एक लम्हा था जैसे तुलू-ए-आफ़्ताब,।
उसकी आँखों में सिमट आइ थी पुरी काऐनात ,
और उसमें दिखा फिर वही पुराना ख़्वाब।
यादों का साथ ही,जारी है यह ज़िन्दगी
अब नहीं है कोई उस्से शिकवा गिला।
मगऱ कुछ ऐसा लगा कि पूरी जिंदगी जी ली।
मैं तो उसे एक पल के लिए ही मिला,
अब कोई ऐसा ख़्वाब नहीं आरज़ू भीनहीं,
जो पहले सा जादू भरदे इस विराने में।
अब कोई लुत्फ़ न मज़ा हीं रहा ,
माज़ी के उन अफ़सानों को दोहराने में।
वक्त के साथ सब बदल ता रहता है,
ढूढ़ें रास्ते इक नया धर बनाने का।
चलो एक बार नई सिम्त में चलते हैं,
जहां न सतायेगा ग़म अपनो और बेगानोका।
नेहाल
- ख़्वाब और सच्चाई
हर ख़्वाब के गुज़रे लम्हों में
एक धुंधला सा अक्स मिलता है,
ऐ ज़िंदगी तुझसे मिलते-मिलते
क्यों तेरा सिरा छूट हीजाता है।
मैं कहाँ था, कहाँ आगया यारो,
मुझ को इसकी कोई खबर ही नहीं।
खुशियों के इतने पास आकर भी,
क्यों सताती है दुख की ये परछाईंयां।
आओ ज़िंदगी को इस्तरह संवार लें,
अचछा बनाने के लिये बना के कुछ बिगाड़ लें।
यह तब्दीलीयां सदा सर्गम अमल में रहतीहै
हयात मिटती है, फिर मिट केज़िंदा होती है।
तामीर और मुनहदिम इकसाथ चलतेहै,
ज़िंदगी अपने दौर को क़ायम रख्ती है ।
मौत वो है जो अबदियत को जनम देती है।
जो आज मिटती है वो मिट कर फिर उभरती है।
ज़िंदगी में तो मोहब्बत का तसलसुल ही न रहा,
जो कभी खामोशी का भी एहसास करा देता है।
दो मुख्तलिफ रंगों का यूँ एक साथ मिल जाना,
कभी हँसा भी देता है, कभी रुलाभी देता है।
मोहब्बत, ज़िदगीके सुकून में इक इतमिनान,
ज़िदगी तसलसुल -बंन्दिशों का है ऐक इम्तिहान।
ज़िदगी खुशियों के साज़ में छुपा दर्द का फ़साना है,
क्योंकि मोहब्बत का यही असली तराना है।
मोहब्बत का ये बेहर-ए-बेकिनार, गहरा है,
इसकी मौजें कभी उठाती हैं तो कभी डुबाती हैं।
हर मायॣसी के पीछे छुपी है एक नई उम्मीद,
मोहब्बत है तो ज़िंदगी है, ज़िंदगी ही मोहब्बत है । .
Nehal
नेहाल उद्दीन अहमद के क़लम से
Prof. Dr. Nehaluddin Ahmad,
Professor of Law, Sultan Sharif Ali Islamic University, (UNISSA) Brunei Darussalam.Email: ahmadnehal@yahoo.com