सीड और आइआइटी-दिल्ली की रिपोर्ट के अनुसार यूपी में वायु प्रदूषण में खतरनाक वृद्धि
लखनऊ, 22 मई: पिछले दो दशकों में खराब एयर क्वालिटी ही वह प्रधान कारण है, जिस वजह से उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के शहरी इलाकों में मृत्यु दर में बढ़ोतरी हुई है।
यह निष्कर्ष है, सेंटर फॉर एन्वॉयरोंमेंट एंड एनर्जी डेवलपमेंट (सीड) और आइआइटी-दिल्ली द्वारा तैयार एक रिसर्च रिपोर्ट ‘नो व्हाट यू ब्रीथ’1 (जानिए आप कैसी हवा में सांस ले रहे हैं) का, जिसके अनुसार बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण गंगा के मैदानी इलाकों में स्थित उत्तर भारत के शहरों में ‘समयपूर्व मृत्यु-दर (प्रीमैच्योर मोर्टेलिटी)’ चिंताजनक ढंग से प्रति लाख आबादी पर 150-300 व्यक्ति के करीब पहुंच गयी है।
यह भी महत्वपूर्ण तथ्य सामने आया है कि अध्ययन में शामिल 11 शहरों में (रांची को छोड़कर) सभी जगह एक प्रदूषक तत्व- पर्टिकुलेट मैटर (पीएम2.5) का स्तर नेशनल स्टैंडर्ड से दो गुना ज्यादा2 और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सालाना स्वीकारयोग्य सीमा3 से आठ गुना ज्यादा हो गया है। इन ग्यारह शहरों में उत्तर प्रदेश के आगरा, इलाहाबाद, कानपुर, लखनऊ, मेरठ, वाराणसी, गोरखपुर, बिहार राज्य के पटना, गया व मुजफ्फरपुर और झारखंड प्रदेश के रांची को शामिल किया गया।
यह रिपोर्ट सालाना मध्यमान पर्टिकुलेट मैटर (पीएम2.5) के संकेंद्रण की पड़ताल करता है, जिसे पिछले 17 सालों के सैटेलाइट डाटा के गहन विश्लेषण से तैयार किया गया है। इस रिपोर्ट में शामिल वायु प्रदूषण से त्रस्त 8 शहरों को पहले ही वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के द्वारा तैयार ग्लोबल एयर क्वालिटी एसेसमेंट पर आधारित रिपोर्ट ‘ग्लोबल एंबियंट एयर क्वालिटी डाटाबेस (2018)4 में स्थान मिल चुका है।