छत्तर मंज़िल में एक जगह खुदाई के दौरान लगभग ५० फिट की एक नाव निकली है ,जिसके सन्दर्भ में कहा जा रहा है कि यह नाव शाही दौर की है.
छतर मंज़िल और फरहत बख्श पैलेस के इतिहास में आज का दिन बहुत महत्वपूर्ण रहा जब इन स्मारकों की खुदाई के समय एक पुरातन काल की नाव के भगनाशेष इस स्मारक की खुदाई के समय मिले। यह अवशेष तब मिले जब आज नितिन कोहली के टीम अपने कार्य में व्यस्त थी और नियमित खुदाई कर रही थी।
इस स्मारक में जीर्णोद्धार का कार्य राज्य पुरातत्व विभाग की निगरानी में उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम के द्वारा कराया जा रहा है। बताते चलें कि इस स्मारक की जीर्णोद्धार से सम्बंधित नितिन कोहली के द्वारा इस स्मारक के पुनर्निर्माण एवं जीर्णोद्धार में पारम्परिक मटेरियल प्रयोग किया जा रहा है जिसमें सुर्खी, चूना , बेल , उरद की दाल, गुड़ जैसी वस्तुओं का प्रयोग किया जा रहा है। नितिन कोहली ने बताया कि उनके द्वारा छतर मंज़िल, फरहत बख्श , गुलिस्ताने इरम और कोठी दर्शन बिलास में कहीं भी एक ग्राम सीमेंट का प्रयोग नहीं किया गया है जो कि उनके द्वारा कराये गए कार्यों को अनूठा बनाते हैं। आज के युग में जब कि भारतीय पुरातत्व सर्वे भी अपनी पुराणिक स्मारकों के जीर्णोद्धार में सीमेंट का प्रयोग कर रहा है , ऐसी पहल वास्तव में अनुकरणीय है।
आर्किटेक्ट कुमार कीर्तिकय के अनुसार यह नाव शाही दौर की है और यह किसी तरह से दफन हो गयी थी.उन्होने बताया कि निकाली गयी नाव का परिक्षड़ किया जा रहा ताकि अतरिक्त जानकारी मिल सके .
छतर मंजिल लखनऊ का एक ऐतिहासिक भवन है।
इस ऐतिहासिक खोज के लिए जिसमें राजमिस्त्री, इंजीनियर और कर्मचारी शामिल हैं और राज्य पुरातत्व से मार्गदर्शन प्राप्त किया। , नितिन कोहली, वास्तव में संरक्षण कार्यों को अंजाम देने वाले व्यक्ति ने कहा कि यह खोज, अन्य खोजों की तरह है, जिसमें नीचे एक पूरी मंजिल, सुरंग और शैटॉ डे क्लॉड मार्टिन पट्टिका है जिसे उनके द्वारा खोजा गया था, निश्चित रूप से दुनिया भर में इस स्मारक को लोकप्रिय बनाएंगे। .
इसके निर्माण का प्रारंभ नवाब ग़ाज़ीउद्दीन हैदर ने किया और उनकी मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी नवाब नसीरुद्दीन हैदर ने इसको पूरा करवाया। इस दो मंज़िली इमारत का मुख्य कक्ष दुमंज़िली ऊँचाई का है और उसके ऊपर एक विशाल सुनहरी छतरी है जो दूर से देखी जा सकती है। इस छतरी के कारण ही इस भवन का नाम छतर मंज़िल पड़ा है।
यह पैलेस कई मालिकों के माध्यम से अवध सादत अली खान और वाजिद अली शाह और ब्रिटिशों के नवाबों सहित चलाया गया है और इसके निर्माण के बाद से बदलाव 1780 के दशक में शुरू हुआ था।
यह अवध के शासकों और उनकी पत्नियों के लिए एक महल के रूप में काम किया बाद में 1857 के विद्रोह के दौरान यह इमारत भारतीय क्रांतिकारियों का गढ़ बन गई।
1857 के युद्ध के दौरान इसका एक हिस्सा ब्रिटिश द्वारा नष्ट कर दिया गया था।
1857 के युद्ध के बाद सरकार ने एक इमारत को अमेरीकी एनजीओ को आवंटित कर दिया था जिसने इसे 1947 तक मनोरंजन उद्देश्यों के लिए एक क्लब के रूप में इस्तेमाल किया था, छतरंज मंजिल को संयुक्त सेवा क्लब के रूप में इस्तेमाल किया गया था।