अली हसनैन आब्दी फ़ैज़
अगर बेहिजाब और खुले सर तंग कपड़े पहनकर घूमना और अपने चेहरे और जिस्म की नुमाइश करना मॉडर्न होना कहलाता है तो मेरे ख्याल में जानवर से ज्यादा मॉडर्न तो कोई भी नहीं.
रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलेह g वसल्लम ने फरमाया दूसरों की औरतों से दूर रहो तुम्हारी औरतें भी पाक दामन रहेगी, और अपने वालीदैन के साथ हुस्न ए सुलूक करो तुम्हारी औलाद भी तुम्हारे साथ हुस्न ए सुलूक करेगी.
औरत जब बेपर्दा होकर बाहर निकलती है फिर वह औरत नहीं बल्कि बहुत सी बुरी नजरों के लिए तफरी की चीज़ बन जाती है. और आदि काल से हर मर्द औरत को बेपर्दा और उन्मुक्त वितरण करते हुए देखना चाहता है इसलिए औरत की आजादी और स्वतंत्रता के नाम पर मर्द ने उसे परत दर परत नंगा करता रहा कई धर्मों में तो अपने से कम दर्जे की औरतों को छाती ढकने का अधिकार भी नहीं दिया गया था ज्ञाता और इतिहास के जानकार भली-भांति जानते हैं! चीर अर्थात वस्त्र हरण औरत का सबसे बड़ा अपमान समझा जाता था इज्जतदारो में।
लेकिन आज समाज औरत को बेपर्दा और वस्त्रहीन देखना पसंद करता है आज जहां मुआशरे में हज़ारहा बुराइयां फैली हुई है उनमें एक बहुत बड़ी बुराई ये भी है की मर्द का एक ना महरम औरत को देखना और एक औरत का ना महरम मर्द के लिए सजना सवरना और बे पर्दगी से घूमना, लोग इसे फैशन और मॉडर्न समाज का हिस्सा मानते हैं.
मगर अल्लाह के यहां ये कुसूर छोटा नहीं बल्कि बहुत बड़ा है, मौला तआला क़ुर्आन में इरशाद फरमाता है कि मुसलमान मर्दों को हुक्म दो कि अपनी निगाहें कुछ नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें ये उनके लिए बहुत सुथरा है. पाठक जनों यहां ध्यान देने की बात यह है कि हर बुद्धिजीवी का धर्म किसी ना किसी तरह पर्दे को अच्छा मानता है कहीं घूंघट कहीं स्कार्फ तो कहीं दुपट्टा घर में नहीं कम से कम धर्मस्थल पर तो इस्तेमाल होता ही है आज से सो डेढ़ सौ साल पुराना कोई भी फोटो किसी महिला का देख ले आपको पता चल जाएगा क्या आप के पुरखे क्या करते थे हीरे जवाहरात को कपड़े में लपेटा जाता है और कंडे अर्थात गोबर के उपले खुले में पड़े रहते हैं।
अन्य धर्मों की अपेक्षा इस्लाम में इस बात का स्पष्ट उल्लेख किया है देखें कुरान की निम्नलिखित आयत
“बेशक अल्लाह को उनके कामों की खबर है और मुसलमान औरतों को हुक्म दो कि अपनी निगाहें कुछ नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें और अपने दुपट्टे अपने गिरेहबानों पर डाले रहें और अपना श्रंगार ज़ाहिर ना करें|
मगर अपने शौहरों पर या अपने बाप पर या शौहरों के बाप या अपने बेटे या शौहरों के बेटे या अपने भाई या अपने भतीजे या अपने भांजे या दीन की औरतें या अपनी कनीज़ें जो अपने हाथ की मिल्क हो या वो नौकर जो शहवत वाले ना हों या वो बच्चे जिन्हें औरतों के शर्म की चीज़ों की खबर नहीं, और औरतें ज़मीन पर ज़ोर से पांव ना रखें कि उनका छिपा हुआ श्रंगार जान लिया जाए.” पारा 18,सूरह नूर,आयत 30-31
इस एक आयत में मौला ने पर्दे का पूरा बयान नाज़िल फरमा दिया कि किससे पर्दा करना है और किससे नहीं और ये भी कि पर्दा सिर्फ औरत ही नहीं करेगी बल्कि मर्द का भी किसी ना महरम को देखना जायज़ नहीं है अब वो औरतें जो बेहिजाब सड़कों बाज़ारों मेलों-ठेलों मज़ारों या कहीं भी घूमती फिरती हैं वो अशद गुनाहगार हैं.
उन पर तौबा वाजिब है और माज़ अल्लाह अगर इंकार करे जब तो काफिर है कि क़ुर्आन का इनकार हुआ,दूसरी जगह मौला इरशाद फरमाता है कि ऐ महबूब अपनी बीवियों और मुसलमान औरतों से फरमा दो कि वो अपनी चादरों का एक टुकड़ा अपने मुंह पर डाले रहें, ये उनके लिए बेहतर है कि ना वो पहचानी जायें और ना सताई जायें और अल्लाह बख्शने वाला मेहरबान है. पारा 22,सूरह अहज़ाब,आयत 59
इसका शाने नुज़ूल ये है कि कुछ मुनाफिक़ मुसलमान औरतों को रास्ते में छेड़ा करते थे जिस पर ये आयत उतरी कि मौला ने साफ फरमा दिया कि अपनी पहचान छिपाकर चलेंगी तो ना पहचान होगी और ना कोई उन्हें छेड़ेगा,फिर इरशाद फरमाता है कि और अपने घरों में ठहरी रहो और बे पर्दा ना रहो जैसे अगली जाहिलियत की बे पर्दगी. पारा 22,सूरह अहज़ाब, आयत 33
अगर अगली जाहिलियत की बे पर्दगी समझ में नहीं आ रही है तो जाकर किसी मैरिज हाल किसी सिनेमा हाल किसी पार्क या सड़कों पर देख आईये कि अगली जाहिलियत की औरतें कैसी हुआ करती थीं, ये तो हुआ क़ुर्आन का बयान अब थोड़ा हदीस की भी सैर कर ली जाये, इस्लाम धर्म में पर्दा सिर्फ औरतों के लिए ही नहीं है मर्दो के लिए भी इसका हुक्म है हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि अजनबी औरत को शहवत (कामुकता की दृष्टि )से देखने वालों की आंख क़यामत के दिन आग से भर दी जायेगी. हिदाया,जिल्द 4,सफह 424
इस्लाम धर्म में केवल जिस्म का पर्दा नहीं है इस्लाम आपको बुराइयों से रोकने के लिए हिदायत करता है कि कानो से उसकी बात सुनना कानों का ज़िना है ज़बान से उससे बात करना ज़बान का ज़िना है हाथों से उसको छूना हाथों का ज़िना है और दिल में उससे नाजायज़ मिलाप की बात सोचना ये दिल का ज़िना है. अबु दाऊद,जिल्द 2,सफह 147
अब सवाल उठता है कि यह आर्टिकल लिखने की मुझ जैसे व्यक्ति को आवश्यकता क्या पड़ी जो पर्यावरण और प्राकृतिक संरक्षण पर कार्य कर रहा है आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि एक वीडियो सोशल मीडिया में वायरल किया जा रहा है इस वीडियो में महिला को स्वतंत्रता के नाम पर बेपर्दा होने की शिक्षा दी जा रही है
वीडियो बनाने वाले व्यक्तियों का धार्मिक और राजनीतिक उद्देश्य जो भी हो परंतु यह भूल गए कि उनका धर्म भी महिला की सुरक्षा और सम्मान के लिए ही स्थापित हुआ उनकी दो महान पुस्तकों में सिर्फ और सिर्फ महिला सुरक्षा के इर्द-गिर्द रची गई है और महापुरुषों की छवि सिर्फ और सिर्फ महिलाओं के सम्मान और सुरक्षा के कारण बनी आज वही धर्म के कुछ बुद्धिजीवी वर्ग से न ताल्लुक रखने वाले व्यक्ति अपनी तुच्छ मानसिकता के साथ नारी स्वतंत्रता पर अपने धर्म के मूल उद्देश्यों का परित्याग करते हुए शॉर्ट फिल्म बनाकर सोशल मीडिया पर रिलीज कर रहे हैं।
बेशक इस्लाम औरत को हुक्म देता हैं कि वह पर्दे में रहे। दुनिया के सामने अपने जिस्म और खूबसूरती की नुमाइश (प्रदर्शन) न करें सिवाय उसके शौहर (पति) के क्यों इस्लाम ने सिर्फ औरतों को ही पर्दे में रहने का हुक्म दिया?
क्यों सारी पाबंदियां सिर्फ औरतों के लिए ही हैं? क्यों मर्दों के लिए इस्लाम पर्दे का हुक्म नहीं देता? क्यों इस्लाम में मर्दों पर किसी भी तरह की पाबंदी नहीं हैं? लगता हैं इस्लाम एक पुराना और रूढ़िवादी धर्म हैं.
कुछ अज्ञानी लोग बिना इस्लाम को पढ़े और समझें इस्लाम पर इस तरह के बेहूदा इल्जाम लगाने से नहीं चूकते।
हालांकि इससे इस्लाम को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि इस्लाम का प्रत्येक कानून प्रत्येक कसौटी (criterion) पर खरा उतरता हैं.
चाहे वो सामाजिक कसौटी (Social criterion) हो, तार्किक कसौटी (logical criterion) हो या फिर वैज्ञानिक कसौटी (Scientific criterion) हो। फिर भी इन बेतुके सवालों के जवाब देने जरूरी हैं ताकि सच्चाई सबके सामने आ सकें।इस्लाम में पर्दे का हुक्म सिर्फ औरतों के लिए ही नहीं बल्कि मर्दों के लिए भी हैं। जैसा कि कुरान ए पाक में लिखा है.
कुरान की इस आयत के जरिये अल्लाह (ईश्वर) मुसलमान मर्दों को यह हुक्म दे रहा है कि वे अपनी नजरें नीची रखे और अपनी शर्मगाहो (शरीर के खास अंगों) की हिफाजत करें क्योंकि इसी में उनकी भलाई हैं। यहाँ नजरें नीची रखने का ताल्लुक (सम्बन्ध) पर्दे से ही हैं.
पर कुछ लोगों के मन में यह सवाल उठ सकता हैं कि नजरें नीची रखने से पर्दा कैसे हुआ? तो आइये इस सवाल का जवाब हम विज्ञान से ही पूछ लेते हैं क्योंकि हो सकता हैं कि इस्लाम के तर्क (logics) को कुछ लोग कुबुल ना करे हालांकि हकीकत तो यह हैं कि जो भी विज्ञान आज बता रहा हैं इस्लाम 1500 साल पहले ही बता चुका हैं। ये मै अपने Articles (लेखों) द्वारा साबित भी कर चुका हूँ.
अमेरिका की एक मशहूर Anthropologist (मानव विज्ञानी) जिसका नाम Helen Fisher हैं पिछले 30 सालों से Rutger University, America में Anthropology (मानव विज्ञान) की professor हैं और Human Behaviour (मानव व्यवहार) पर रिसर्च कर रही हैं और इसी विषय पर कई किताबें भी लिख चुकी हैं। उसने अपने रिसर्च से बताया कि इन्सान के शरीर में कुछ हार्मोन (hormones) होते हैं.
जैसे Testosterone और Estrogens और दिमाग में कुछ neurotransmitters (रसायन) होते हैं जैसे Dopamine और Serotonin और ये औरतों की तुलना में मर्दों में ज्यादा मात्रा में पाए जाते हैं जो किसी भी व्यक्ति के व्यवहार को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं.
और वह कहती हैं कि जब भी किसी मर्द की नजर किसी औरत पर पड़ती हैं तो ये हार्मोन और रसायन active (सक्रिय) हो जाते हैं और फिर मर्द उस औरत को देखकर उत्तेजित हो जाता हैं। और ऐसा तब होता हैं जब या तो औरत बहुत खूबसूरत (Charming) हो या उसका जिस्म का उभार (Figure) दिखाई देता हो.
और ऐसा सिर्फ इन्सानो में ही नहीं बल्कि पक्षियों और जानवरों में भी होता हैं। आपने सुना भी होगा और देखा भी होगा कि जब कोई हाथी पागल हो जाता है तो वह तबाही मचाने लग जाता हैं। लेकिन विज्ञान कहता है कि वह हाथी पागल नहीं होता है वह तो ऐसा इसलिए करता है क्योंकि उसमें Testosterone की मात्रा बहुत बढ़ जाती हैं.
इसी तरह एक शेर दूसरे शेरों के बच्चों को मार देता है ताकि शेरनी उसकी तरफ (Mating) के लिए आकर्षित हो जाए। और सभी प्रकार के नर जानवर मादा को पाने के लिए एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं। John Hopkins University के वैज्ञानिकों ने पक्षियों के व्यवहार पर रिसर्च किया और मालूम किया कि नर पक्षी गाना गाते हैं मतलब अलग अलग तरह की आवाजें निकालते हैं ताकि वे मादा पक्षियों को आकर्षित कर सकें.
तो विज्ञान के मुताबिक औरतों (मादाओं) के जिस्म और खूबसूरती को देखकर मर्द (नर) उत्तेजित हो जाते हैं। अगर मर्दों को औरतों की तरफ आकर्षित होने से रोकना है तो औरतें अपनी खूबसूरती व जिस्म को पर्दे में रखें और मर्द भी औरतों को न घुरे तो कुरान में अल्लाह (ईश्वर) ने हमें यही तो हुक्म दिया हैं कि मुसलमान औरतें अपने आप को पर्दे में रखे.
और मुसलमान मर्द अपनी नजरें नीची रखे मतलब औरत को न घुरे। तो यह साबित हो गया कि इस्लाम ने सिर्फ औरतों को ही नहीं बल्कि मर्दों को भी पर्दा करने का हुक्म दिया हैं और इसी में इन्सानो की भलाई है।
इसीलिए अब हमारे देश में भी महिला को घूरने पर भी इस्लाम धर्म की तरह पाबंदी लगाने वाले कानून लागू कराए जा रहे हैं और जल्द यह सहित संपूर्ण भारत में लागू करेंगे