दीपक कबीर के क़लम से
“ये कौन लोग हैं…जो राष्ट्रीय एकता पर हमले के समय और ज्यादा मजबूत एकता बनाने की बजाय पड़ोसियों पर ही हमले शुरू कर देते हैं..आतंकवादियों और आतंकी देश की साजिशें को कोसने की बजाय अपनी नापसंद पार्टियों को कोसने लगते हैं..,पोस्टर फैलाने लगते हैं, चुनावी फायदों के नैरेटिव बनाने लगते हैं…, समझ में नहीं आता ये देश के साथ हैं या आतंकवादियों के मकसद को पूरा करने का ठेका लिए हुए हैं..,या फ़क़त मूर्ख हैं..”
मेरी जानकारी में पहली बार कश्मीरी जनता इतने मुखर होकर और पूरी तकलीफ के साथ पहलगाम की आतंकी घटना की सक्रिय मुखालिफत यानी विरोध कर रही है…हर छोटा बड़ा इस हमले से बेहद नाराज़ है..
गरीबी और बेरोजगारी की मार सबसे भयानक होती है,न कोई जमीर बचता है न आत्म सम्मान..,जीने के लिए ,भूख के लिए, बच्चों के निवाले और अपनों के इलाज के लिए बड़े बड़े टूट जाते हैं…पर्यटन और टूरिस्ट कश्मीर के रोजगार थे, उनकी रोजी रोटी थे… उन पर हमला सरकारी नौकरियों से जुड़े कश्मीरियों के अलावा पूरे कश्मीर को आर्थिक तबाह कर सकता है…,और भयानक बेरोजगारी में आतंकवाद ,अपराध और पाकिस्तानी मंसूबों को और शह मिलेगी इसलिए ये बेहद संवेदनशील मसले हैं
मेरे कई दोस्त अभी कश्मीर की वादियों में घूम कर लौटे, चार दिन पहले एक महफिल में सिर्फ कश्मीर के किस्से सुनाए जा रहे थे कि यहां गए ,वहां गए..अब तो वो लोग खरीदा समान सीधे कोरियर कर देते हैं..अखरोट और मेवों के किस्से, घाटियों के किस्से…
यानी इंटरनेट बंदी और भारी दमन कर्फ्यू के बाद पिछले कुछ सालों में वहां स्थितियां बहुत तेजी से सामान्य होने लगी थी और ज्यादातर जगह जीवन पटरी पर आ रहा था..
इस पूरे शांति मय और सामान्य होते माहौल से किसे दिक्कत हो सकती है ?? इस हमले का मोटिव क्या होगा ?? इससे किस किस को राजनैतिक फायदा पहुंच सकता है..
कई सवाल उठ रहे हैं कि पाकिस्तान में जिस तरह बलूचिस्तान में दूसरे प्रांतों के पाकिस्तानियों को मारा जा रहा है और एक बार बलूचिस्तान का मसला जोर पकड़ चुका है तो उसकी प्रतिक्रिया में भारत को डिस्टर्ब करने और जवाब के लिए ये करवाया गया, तो ये भारतीय सुरक्षा एजेंसियों और विदेश नीति का मसला है.. कि देश के अंतरिक हिस्सों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित करें.
कश्मीर का माहौल देखते हुए इंटलीजेंस और सुरक्षा पर बात भी जरूर उठेगी क्योंकि मुझे अभी एक फौजी मित्र ने बताया कि वहां होटल से एक ATM जो सामने गली में था वहां तक जाने में भी दो बार सुरक्षा बलों ने पूछताछ की..वहां हर मोड पर इस तरह की पूछताछ / चेकिंग होती रहती है
फिर 2000 लोगों के प्राकृतिक पिकनिक स्पॉट यानी कितनी ज्यादा सुरक्षा की जरूरत होनी थी..मगर वहां ऐसा नहीं था..और लगभग 20 मिनट तक आतंकी मौजूद रहे … बिना हड़बड़ाहट के निर्दोष लोगों की हत्याएं करते रहे..
पुलिस और सुरक्षा किसके अधिकार क्षेत्र में है, कौन उसका इंचार्ज है ? इंटलीजेंस किसका महकमा है ? बहुत जवाबदेही तय करनी हो तो इन महकमों के हेड से ही सवाल करना चाहिए, वैसे जांच होने देने का ,कुछ पता चलने का वक्त दो..ये नहीं कि ग्राफिक डिजाइनर बिठाए और तुरंत अपने फायदे के पोस्टर बनवाने शुरू कर दिए..
अभी ये स्पष्ट नहीं कि सभी से पास जाकर नाम पूछ पूछ कर मारा या कुछ मामलों में ऐसा हुआ क्योंकि अंधाधुंध फायरिंग में सभी का नाम पूछना तो मुमकिन नहीं हो सकता..पर
जितने भी ऐसे मामले हुए जिसमें पहचान / नाम / कपड़े इत्यादि के आधार पर हत्या की उससे ये स्पष्ट है वो एक सांप्रदायिक नफरत और डिवाइड का मैसेज हिंदुस्तान को देना चाहते थे…ये उनका मुख्य मकसद था..
क्या हम उनके मकसद को कामयाब करने में आतंकवादियों की मदद करेंगे ?? क्या आप करेंगे ?? या एकजुट होकर उन्हें शिकस्त देंगे…जैसा कश्मीरी अवाम कल रात से ही कर रही है
सिर्फ मरे नहीं, बहुत से लोग घायल भी हुए , उन्हें बचाने के लिए दवा, अस्पताल आदि सब हुआ बहुत जल्दी , ये सब भी लोकल मुसलमान लोग ही कर रहे थे..बिना डरे हुए , (यहां मुहल्ले या सड़क पर हत्या हो जाती है कितनी दुकानें खिड़कियां दो दिन नहीं खुलती कि हमने कुछ नहीं देखा कहके)
जब आपकी लड़ाई पाकिस्तान यानी किसी दूसरे देश से है (जहां के दो आतंकवादियों का नाम भी सामने आ रहा है और एक गुट जिम्मेदारी भी ले रहा है) तो अपने देश को एकजुट रखना पहला फर्ज है..ये लखनऊ भोपाल, बलिया ,आजमगढ़ ,पटना , नासिक,गोवा चेन्नई में पाकिस्तान या आतंकवादियों की जगह हिंदुओं को ललकारने वाले या मुसलमानों को कोसने वाले मैसेज लिख कर देश की एकता तोड़ते हुए पाकिस्तान की मदद क्यों कर रहे हो
तुम्हारा इसमें क्या राजनैतिक फायदा है ??
अंतरराष्ट्रीय युद्ध में देश पूछा जाता है धर्म या जाति नहीं,
ब्रिगेडियर उस्मान हों अब्दुल हमीद हों या कांस्टेबल औरंगज़ेब सब मारे जाते हैं (और हम उन्हें शहीद कहते हैं )
सांप्रदायिक हिंसा में धर्म पूछा जाता है जैसा गुजरात दंगों से लेकर सैकड़ों मोबलिंचिंग में आपने देखा तब भी ये नहीं पूछा जाता कि अरे तुम तो मेरे ही देश के हो ,पड़ोस के मुहल्ले में हो, या अंसारी भाई ..तुम तो पिछड़ी जाति के हो. पसमांदा हो..
और जातीय हिंसा में कोई नहीं कहता तुम तो कांवड़ उठा के गए थे , बारात में खूब जम के घोड़ी पर बैठो.. तुम्हारे गले में तो देवी का लॉकेट है, महादेव का गुदना है..,अपने ही हो, जाओ अपने धर्म की किसी भी लड़की या लड़के से प्रेम करो, नौकरी करो ..शादी हम करा देंगे….बल्कि फूंक दिया जाता है दलितों का गांव..
जब भाषा की हिंसा होती है तो न धर्म पूछते हैं न देश न जाति..
,जब क्षेत्र की हिंसा होती है तब सब एक सिरे से मद्रासी, बिहारी या नॉर्थ ईस्ट वाले घोषित हो जाते हैं..
फिलहाल इस समय देश की राष्ट्रीय एकता,शांति और संप्रभुता पर हमला है…इसलिए एक तरफ देश को एक रखने वाले लोग हैं और एक तरफ आतंकवादियों के मकसद के अनुरूप देश को बांटने वाले…
अब ईमानदारी से तय कर लो तुम्हारी पोस्ट ,तुम्हारे सवाल ,तुम्हारी मंशा तुम्हे किस तरफ खड़ा करती है…
राजनैतिक चुनावी फायदा उठाने के बहुत और मौके आयेंगे मेरे दोस्त ! अभी बस पीड़ा के साथ अपनी पीड़ा मिला लो..
फिलहाल अंतिम पंक्ति…
आतंकवादियों , तुम्हारा सर्वनाश हो….
तुमने जघन्यतम गुनाह कर डाला……