लखनऊ में आज से (30 मई) शुरू हुई थी एक लंबी घेराबंदी । लखनऊ की रेज़ीडेंसी बहुत लंबे वक़्त के लिए घिरने जा रही थी,इसका अंदाज़ किसी को नही था ।
एक जद्दोजहद शुरू हुई । बिरतानियों ने कभी नही सोचा था कि कोई उनके यूनियन जैक को भी ज़मींदोज़ करेगा,लखनऊ में बेगम हज़रत महल के नेतृत्व में बिरतानियों का परचम जो रेज़ीडेंसी पर लहरा रहा था,पत्थर मार मार कर ज़मीन पर गिरा दिया गया ।
लखनऊ में हर तरफ बेगम और मौलवी अहमदुल्ला शाह के सिपाहियों ने कब्ज़े शुरू कर दिये ।
अंग्रेज़ रेज़ीडेंसी में क़ैद हो गए । इस भयंकर गर्म दिनों में हमारे पुरखे सीमित संसाधनों से कम्पनी के लोगों से भिड़ गए । दुनिया ने देखा कि नवाबों ने जिस शहर को पलकों पर बैठाया था,वह आतिश बनकर बिरतानियों पर बरस पड़ा । कितने ही बिरतानी फौजी और अफ़सर हलाक़ हो गए । बिरतानी औरते और बच्चे,जिन्हें हमारे बुज़ुर्गों ने मारने से परहेज़ किया,वह रेज़ीडेंसी में क़ैद हो गए ।
1857 में आगे क्या हुआ,उसका अंजाम क्या रहा । ज़ाहिर है गद्दारों से भरे महल,नीव तो कमज़ोर करते ही है । मगर एक बात तो याद रखने वाली है । हमारे बुज़ुर्गों ने बिरतानियों को थाल में सजाकर सत्ता नही दी । बल्कि किसी थाल में उनके सर थे तो किसी में उनका खून,वह लड़े और बहुत शानदार लड़े ।
आज वही 30 मई है । जब लखनऊ ने बिरतानियों की चालों को समझकर उन्हें एक एक करके तोड़ना शुरू किया । लखनऊ की हर इमारत इस बात की गवाह है । लखनऊ का चप्पा चप्पा हमारे बुज़ुर्गों के पांव की निशानदेही करता है । कैसे वह जूझे,लड़े और जीते भी,जी हाँ वह जीते थे,महीनों बिरतानी क़ैद रहे । रेज़ीडेंसी की तबाही इसकी गवाह है ।




