सभी पेरेंट्स की सेवा में,
नमस्कार/आदाब/सलाम/हाई,
हेलो हाऊ आर यू ऑल?? होप यू ऑल आर डूइंग वेल।।
जी हाँ, मैं एक टीचर हूँ, जिसे आप कई नामों से जानते और पहचानते है, जैसे गुरु, उस्ताद, प्रोफेसर, टीचर और कभी-कभी फटीचर। अफ़सोस तो हुआ ऐसा लिखते हुए लेकिन ये सच है, कभी कभी तो हमें ये कह के भी सताया जाता है के हम “कुछ नहीं कर पाए इसलिए हम टीचर बन गए”, लेकिन वो बेचारे अपने इस तंज़ में भी हमारी तारीफ ही करते है। हम “कुछ” नहीं कर पाए, मतलब वो जो हमें सताते है, हमें रुलाते है वो “कुछ” नहीं करते है, और क्योंकि हम “कुछ” नहीं करते है इसलिए हम “सब कुछ” करते है,, जैसे बच्चों को संवारना, उन्हें अच्छा इंसान बनाना, अपने स्टूडेंट्स के ज़रिये अपने देश का नाम रोशन करना, अमन और चैन का पाठ पढ़ाना।
ख़ैर मसला ये नहीं है कि हमें लोग क्या कहते है, लोगों का तो काम ही है कहना!!!
सवाल ये है के हम क्या करते है?
यूँ तो सभी ने देखा है के हम क्लास में किताबों में लिखी हुई बातों को अपने स्टूडेंट्स को पढ़ाते है लेकिन शायद आपको ये नहीं पता के हम अपने स्टूडेंट्स के लिए और क्या-क्या करते है, प्यार और दुलार से समझाते है, हँसाते है, पढ़ाते, लिखाते है और आपके बच्चे को इल्म दे के उसे आदमी से एक इंसान बनाते है। हमने आपके बच्चों को पढ़ाने में कभी कोई कमी नहीं छोड़ी और न ही कभी उन्हें मायूस किया। रात हो चाहे दिन, जब भी आपके बच्चे ने हमें कॉल या मैसेज कर के कोई सवाल पूछा तो हमने फ़ौरन ही उनको जवाब दिया।
teacher
आपके बच्चे का नुक़सान न हो जाए इसलिए ना अपने बच्चे की तबियत की फ़िक्र की और न ही उसकी बहार घुमाने की फरमाईश पूरी की। हमारे कई ररिश्तेदार तो हमसे मिलना भी नहीं चाहते है क्योंकि हम उनके घर किसी फंक्शन तक में नहीं जा पाते है। यहाँ तक हमें दिवाली , होली, ईद, क्रिसमस मानते वक़्त भी आपके बच्चे के आने वाले टेस्ट की फ़िक्र सताती रहती है, दिवाली की पटाखे की गूँज हो या के सिवई की मिठास, हमें बस यही ख़याल आता रहता है के क्या कुछ किया जाए कि आपके बच्चे के अच्छे नंबर आ जाए। अपने सभी दर्दों को अपनी जेब के कोने में छुपा के आपके बच्चे के दर्द को अपना बना लेते है।
आख़िर में इतना कहना शायद सही होगा के एक कुम्हार की तरह हम नर्म मिट्टी को एक साँचे में ढालते है जो दिखने में खूबसूरत भी हो और मज़बूत भी!! हम आपके बच्चे को इस तरह बनाते है के उसमें इंसानियत की ख़ूबसूरती भी हो और पानी के जैसा साफ़ और पाक इल्म उसमे रुका रहे। और हाँ, आपके बच्चे भी हमसे उतना ही प्यार करते है और इज़्ज़त देते है, ईश्वर/ख़ुदा के बाद के सबसे बड़े रुतबे के बराबर, अपने माँ-बाप के बराबर रुतबा देते है। यक़ीन मानिये, जिस वक़्त आपका बच्चा कामयाब होता है तो हमें वो ख़ुशी होती है के हम ऊपर लिखी हुई सभी बातों को भूल के ख़ुशी से झूम उठते है। आपके बच्चे को कामयाब होता देख हम उसे अपनी क़ाबिलीयत/कामयाबी का आईना मानते है।
लेकिन हम आप सबसे ये बताना चाहते है कि हमारे घर-वाले भूखे है, उनका भी पेट है, हमारे भी बच्चे है, हमको उन्हें भी पढ़ाना है, स्कूल भेजना है, उनकी बर्थडे पर एक अच्छा सा केक काटना है, छुट्टियाँ मनाने के लिए हमें भी नैनीताल की वादियाँ आवाज़ दे कर बुलाती है……..और सबकी तरह हमें भी एक घर की ज़रुरत है। अरे हाँ, हमें भी तो नए और साफ़-सुथरे कपड़ो की ज़रुरत है, खाना? क्लास में खड़े हो के हेल्थी डाइट खाने का ज्ञान बाटने वाले को खुद भी तो हेल्थी डाइट ही खाना चाहिए है न? जब हम आपके बच्चो को उनका फ्यूचर बनाने की बात सिखा रहे होते है तो उस वक़्त हम लोगों के बच्चों का क्या? एक मिनट रुकिए!! कोई आवाज़ सुनी आपने? नहीं????? कैसे सुनिएगा? ये तो हमारे घर के ख़ाली बर्तनों के खनकने की आवाज़ें हैं, आप लोग तो ये सुनने के आदी ही हो गए होंगे, जनाब, क्या करें हम है ही फटीचर।
नहीं जनाब नहीं!! हमें आपसे या आपके बच्चे से कोई शिकायत नहीं है, आप लोग तो हमें बहुत इज़्ज़त देते है, लेकिन सिर्फ़ इज़्ज़त से तो सब कुछ पूरा नहीं होता है, जबकि इन चीज़ों के लिए पैसों की ज़रुरत होती है।
हमें शिकायत आपके बच्चे के स्कूल से है , जहाँ हम पढ़ाते है। आप लोग तो ख़ूब मोटी रक़म इन स्कूलों में जमा करके सोचते होंगे के टीचर्स की सैलरी भी बहुत ज़्यादा होगी लेकिन आइए हम आपके कान में कुछ बताए “लोग हमारे बारे में ग़लत नहीं कहते है, हम वाक़ई फटीचर है” हममे से कई टीचर्स सिर्फ़ 8-9 महीने ही सैलरी पाते है वो भी इतनी के बताने में भी शर्म महसूस हो रही है, बस यूँ समझ लीजिए के आपके घर में अगर कोई मिस्त्री काम कर रहा है तो कभी कभी और हममे से कुछ की उससे भी कम है।
teacher
हम आपके बच्चे की ज़िन्दगी के मिस्त्री है लेकिन आपके घर बनाने वाले मिस्त्री से भी कम है हमारी सैलरी, सोने पे सुहागा तो ये है के हमें रोज़ एक जेंटलमैन ही दिखना है, अपने मिस्त्री भाई की तरह हम बनियान में काम नहीं कर सकते है तो हमें कोट-पैंट विद टाई पहननी पड़ती है, रोज़ चेहरे को भी आईने की तरह चमकाना होता है, हमारी एक चौथाई कमाई तो इसी सब में निकल जाती है। ख़ैर छोड़िए, ये तो हमारे घर की बात है किसी न किसी तरह अपनी फटी हुई जेबों में पेवन्द लगा के पैसे बचा ही लेंगे।
teacher
मुद्दे की बात तो ये है के अपनी सहालग के दौर में (8 महीने) तो हम कुछ कमा भी लेते है लेकिन उसके बाद के 4 महीने के बारे में जैसे ही ख़्याल आता है तो हमारी रूह ही काँप जाती है, पूरे 4 महीने बिना सैलरी के????? हाँ, अगर इन 8 महीनों में पैसों की बारिश कुछ तेज़ होती तो बाल्टियां, और डिब्बे भर के रख भी लेते लेकिन अफ़सोस, इन 8 महीनों में भी हमारी छत बस नम ही हो पाती है तो बाल्टी में पानी भर कर सूखे दिनों के बचाना बहुत ही मुश्किल है इसीलिए अपनी सूखी हुई बाल्टियों और बर्तनों के साथ हम लोग 4 महीने के सूखे और कभी न खत्म होने वाले सफ़र के लिए कूच कर देते है। इन सभी परेशानियों के बीच जैसे ही हम कुछ पढ़ने बैठते है, बहुत सारी बातें मानों काटने को दौड़ती है, कोई कह रहा होता है “3 महीने से पैसे नहीं दिए, कब दोगे??”, कहीं से आवाज़े आ रही होती हैं, “ अमा, कोई और काम ढूंढ लो”, किसी की पुरानी बातें कानों में गूँजती सुनाई देती है, “माट-साब आप??? आप कपड़ों की दुकान लगाए हुए है? आप पे ये काम सूट नहीं करता है के आप त्योहारों में रोड के किनारे दूकान लगाइए।
teacher
बस।।।। इसी वक़्त अपने कानों के साथ-साथ अपनी किताब को ज़ोर से बंद कर के अपनी किस्मत पर रोते है और सोने चले जाते है क्योंकि हम ये सोचते है कि आख़िर कौन है जिसे अपना ये दर्द बताए? सिवाए मज़ाक़ उड़ाने के कौन है जो हमारे इस दर्द को समझेगा? कौन हमारे ज़ख्मों पे मरहम लगाएगा?? लेकिन आप चाहते होंगे के आपके बच्चे के स्कूल में पढ़ाने वाला टीचर खूब क़ाबिल भी हो???? तो आप खुद बताइये के ख़ाली पेट पढाई कैसे होगी??
teacher
हम सभी टीचर्स, आप पेरेंट्स से ये कहना चाहते है के आपके बच्चे की तरह हमारे बच्चे भी बहुत प्यारे है, उन्हें भी स्कूल में पढ़ने की ज़रूरत है, आपके घर की तरह हमारे घर में भी खाना पकता है, टीवी देखा जाता है, बिजली का बिल भी आता है, हमारे बच्चे के स्कूल में भी फुंक्शन्स है, हमारी बीवी-बच्चे, माँ-बाप, भाई-बहनों को भी अच्छे कपडे पहनना और अच्छा खाना खाना है।लेकिन कैसे? इतनी परेशानियों में कैसे? हम टीचर्स अक्सर अपनी बद-हाली अपने फटे हुए मोज़ों की तरह अपने बिना सोल के जूते में छुपा लेते है और किसी को कुछ पता न लगे इन जूतों को पोलिश से चमकाते रहते है लेकिन कभी अगर कोई बड़े ख़र्च जैसा काँटा हमारे पैर में चुभ जाता है तो हमारा खून हमारे क़लम के ज़रिये निकल ही आता है।
teacher
हम लोग अपने कुछ साथियों की वजह से बदनाम हो गए है लेकिन हम लोग आपको ये यक़ीन दिलाना चाहते है के हम आपके बच्चे को अपने बच्चे की तरह ही प्यार करते है, मर पीट तो दूर की बात इन कलियों को गुस्से में झिड़कते भी नहीं। हमें यक़ीन है के जब आप स्कूल में इतनी मोटी रक़म फ़ीस की तरह भरते है तो उसकी रसीद में आप ज़रूर देखते होंगे के कितना पैसा स्कूल वाले किस चीज़ में ख़र्च करते है, मसलन लाइब्रेरी फ़ीस, स्पोर्ट्स फ़ीस, ट्यूशन फीस, आदि और आप ये भी देखते होंगे के स्कूल के क्लासेज़ में वेंटिलेशन है या नहीं, पीने का पानी साफ़ है या नहीं, टीचर्स क्वालिफाइड है या नहीं?? लेकिन कभी ये नहीं सोचा या पुछा होगा के जो टीचर आपके बच्चे को पढ़ाएगा, उसे अच्छा इंसान बनाएगा उसको अच्छी सैलरी भी मिलते है? उसका हाल क्या है?
हमारी आपसे बस ये गुज़ारिश है के आप स्कूल वालो से बस एक सवाल पूछ लीजिएगा के आपके बच्चे का स्कूल इतनी मोटी फ़ीस ले के हम टीचेर्ज़ को कितनी सैलरी देता है????
प्लीज,
आपका अपना,
परेशानियों की धुंध में खोया हुआ एक गुम-नाम टीचर।
नोट: हम ख़ुद एक टीचर है और हमने टीचर जैसी इज़्ज़तदार नौकरी को “फटीचर” कह के संबोधित किया। हम आपसे माफ़ी माँगना चाहते है लेकिन सच ये है के हम लोगों को दुनिया इसी नाम से पुकार रही है।
हम टीचर कभी फटीचर नहीं हो सकते है क्योंकि हम सबके पास इल्म की दौलत तो है लेकिन हममें से कुछ के पास दुनयावी दौलत नहीं है और उनके और उनके घर वालों के बहुत ही बुरे हालात है।