#कुछ_बातें :
1.अरब में जंग जैसे हालात के बारे में आज दोपहर बाद तीन बजे से लखनऊ के
सीनियर सहाफी, सैय्यद हुसैन अफसर साहब के * शहरनामा * न्यूज पोर्टल की
तरफ से आयोजित बहस में इस बात पर जोर दिया गया वहां जल्द से जल्द अमन की
बहाली के लिए हर संभव कोशिश की जानी चाहिए और हिंदुस्तान इसके लिए ठोस
पहलकदमी करे।
2. यह सुझाव दिया गया हिंदुस्तान की नरेंद मोदी सरकार इस पर कारगर उपाय
करने भारतीय संसद का विशेष सत्र बुला कर उसमे बहस के बाद आम सहमति से एक
प्रस्ताव पारित करके उसे सभी देशों को भेजे.
3.यह प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र के 2006 तक अंडर सेक्रेटरी जनरल रहे और
अभी केरल से लोकसभा में कांग्रेस के मेंबर शशि थरूर के जरिए भेजने का
प्रयास हो.
4. यह महसूस किया गया अभी भी सब कुछ खत्म नही हुआ है और उम्मीद पर ही
दुनिया कायम है. हमें अपनी उम्मीदें खत्म नहीं करनी चाहिए.
5. यह भी महसूस किया गया कि जंग जैसे इन हालात को दूर करने की कोशिश के
लिए मुसलमान, यहूदी, हिंदू
या फिर ईसाई होना जरूरी नहीं है और दुनिया के हर इंसान का इसमें हाथ
बंटाने का फर्ज और हक भी है.
6. इस बहस में अन्य लोगों के अलावा लखनऊ से कांग्रेस की तरफ से पिछला
चुनाव लड़ चुकी सदफ जफर और दिल्ली से गैर -लाभकारी पीपुल्स मिशन ट्रस्ट
के सेक्रेटरी जनरल सीपी झा ने अपनी अस्वस्थता के बावजूद हिस्सा लिया , जो
कि यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया ( यूएनआई) से रिटायर होने के पहले मुंबई में
स्पेशल कोरेस्पोंडेंट थे.
7. सीपी झा ने अफसोस जाहिर किया कि प्रधानमंत्री मोदी ने इजरायल के
समर्थन में हाल में ट्वीट कर फलस्तीन के बारे में भारत के राष्ट्रपिता
महात्मा गांधी से लेकर पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी,
राजीव गांधी , मोरारजी देसाई,अटल बिहारी बाजपेई , लोकनायक जयप्रकाश
नारायण ही नही अपनी ही सरकार के विदेश मंत्रालय तक के स्टैंड का उलंघन
किया है.
8. उन्होनें याद दिलाया कि जिस हमास के इजरायल पर आतंकी हमले से जंग जैसे
हालात पैदा हुए उसे इजरायल ने ही फ़लस्तीन मुक्ति संगठन के नेता यासर
अराफ़ात का कत्ल करने में असफल रहने के बाद खड़ा किया था, नस्लवादी इजरायल
ने ही यासर अराफ़ात को धीमा जहर देकर मारा और तभी से फ़लस्तीन और गज पट्टी
पर फ़लस्तीन की निर्वाचित सरकार का कोई ठोस असर नहीं रह गया है।
9 इन पंक्तियों के लिखे जाने तक शहरनामा की बहस जारी थी।