अरब के एक मशहूर जर्नलिस्ट ने अपने एक एक विश्लेषण में सऊदी अरब की ईरान और रूस के खिलाफ़ तेल की जंग के बारे में सऊदी अधिकारियों को तेहरान और मास्को के इस संभावित प्रतिशोध के बारे में चेतावनी दी है और लिखा है: काश सऊदी अरब तेल के हथियार से फिलिस्तीन की रक्षा के लिए भी कोई काम कर लेता।
अरब के एक मशहूर जर्नलिस्ट ने अपने एक एक विश्लेषण में सऊदी अरब की ईरान और रूस के खिलाफ़ तेल की जंग के बारे में सऊदी अधिकारियों को तेहरान और मास्को के इस संभावित प्रतिशोध के बारे में चेतावनी दी है और लिखा है: काश सऊदी अरब तेल के हथियार से फिलिस्तीन की रक्षा के लिए भी कोई काम कर लेता।
रिपोर्ट के अनुसार, अब्दुल बारी अतवान अरब के एक मशहूर राइटर ने अल-यौम न्यूज़ पेपर में अपने एक विश्लेषण में सऊदी अरब की ईरान और रूस के खिलाफ तेल जंग की ओर इशारा करते हुए बल दिया कि तेल की कीमत को कम करने और उत्पादन बढ़ाने की रियाद की कोशिश, राजनीतिक लक्ष्यों और उद्देश्य के तहत है।
अतवान ने सऊदी अरब के तेलमंत्री अली अलनईमी के तर्क की ओर इशारा करते हुए कि जिसने ओपेक की दो दिन पहले होने वाली बैठक में दावा किया था कि इस क़ीमत को कम करने का उद्देश्य, अमेरिका के तेल उत्पादन को गैर आर्थिक करना है, ताकीद की लेकिन पहली फुरसत में रूस, ईरान, इराक़ और वेनेज़ोएला को मूल्य में कमी का नुक़सान होगा। यह लिखने वाला आगे चलकर रियाद के अधिकारियों के तर्क को अस्वीकार करते हुए कहता है कि कीमतों को घटाने का उद्देश्य यूक्रेन में हस्तक्षेप की वजह से रूस को और सीरिया के समर्थन की वजह से और यूरेनियम संवर्धन के उसके क़ानूनी अधिकार के कारण और वेन की वार्ता से पीछे हटने की पेशकश को ठुकराने के आधार पर ईरान को घुटने टेकने पर मजबूर करना है।
उन्होंने आगे चल कर इस बात की ओर इशारा करते हुए कि तेल की कीमत 120 डॉलर से घटा कर 70 डॉलर से रूस और ईरान को कठिन आर्थिक परिस्थितियों का सामना करना होगा, कहा: सऊदी अरब ने तेल के हथियार से सोवियत संघ का मुकाबला करने लिए 1988 में भी इस्तेमाल किया था इसी तरह उसने सद्दाम हुसैन की सरकार पर भी दबाव डाला कि आखिरकार जिसका अंत कुवैत की घटना पर हुआ।
अतवान ने इस बात की ओर इशारा करते हुए कि ईरान और रूस जैसे देशों के खिलाफ सऊदी अरब की पहल रियाद के लिए भी ख़तरनाक परिणाम लेकर आएगी, रूस 80 के दशक के अंत में एक ऐसा देश था जो अंतिम सांसें ले रहा था और गोरबा चौफ जैसा कमजोर इंसान और उसके बाद बोरेस बेल्तसीन उस पर राज कर रहे थे, लेकिन इस समय रूस ऊंचाई की ओर अग्रसर है और मास्को में व्लादिमीर पुतीन का सऊदुल फ़ैसल से मुलाकात नहीं करना रूस और सऊदी के संबंधों में दूरी को उजागर कर रहा है कि संभव है दोनों के सम्बंध ख़तरनाक स्तर तक पहुँच गये हों। इसी तरह इस जर्नलिस्ट ने इस ओर इशारा करते हुए कि तेल की कीमत में कमी खुद सऊदी अरब के लिए भी बजट में घाटे का कारण बन सकती है और इस देश के आर्थिक व्यवस्था पर भी बहुत नकारात्मक प्रभाव छोड़ सकती है, लिखा है:
80 के दशक में सऊदी अरब के तेल की कीमत में कमी करने के फैसले ने सद्दाम की हुकूमत के पतन का रास्ता प्रशस्त किया था और कुवैत पर क़ब्जा हुआ और दोनों देश उजाड़ हो गए जैसा कि अमेरिका चाहता था। उस जमाने में सऊदी अरब ने जो अमेरिका पर भरोसा किया था उसका उल्टा परिणाम निकला था इराक़ सद्दाम के बाद सऊदी अरब के दुश्मन में बदल गया, आज सऊदी अरब की राष्ट्रीय एकता और जमीनी अखंडता को कई तरह के खतरों का सामना है। वह आगे लिखते हैं: किसी को नहीं पता कि ईरान और रूस, सऊदी अरब के इस षड़यंत्र का क्या जवाब देंगे, केवल समय ही बताएगा कि जवाब क्या होगा और सऊदी अरब को इन स्थितियों का फायदा होगा या नहीं।
अब्दुल बारी अतवान ने ताकीद की कि सऊदी अरब के समर्थक यह सोचते हैं कि ईरान से अपने हितों की रक्षा करने के लिए इसके अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था, लेकिन अगरचे यह बहस किसी हद तक सही है, लेकिन सऊदी अरब आंतरिक और बाहरी जवाबी कार्यवाहियों और ईरान व रूस के प्रतिशोध के मुक़ाबले में निहत्था है। उन्होंने अंत में इस ओर इशारा करते हुए कि काश सऊदी अरब तेल के हथियार से, अमेरिका के खिलाफ़, न कि अमेरिका के समर्थन में, अधिकृत क़ुद्दस और फिलिस्तीन के लोगों और उनके अधिकारों की राह में काम लेता, ताकीद की कि हम ने कई बार इस मक़सद के लिए गुहार लगाई है लेकिन किसी ने हमारी आवाज नहीं सुनी लेकिन हम इसी तरह चिल्ला रहे हैं इसलिए कि हमारे पास हमारे गले फट जाने तक फरियाद करने के सिवा कोई चारा नहीं है।