अब तक दस लाख से अधिक विदेशी ज़ायरीन इराक़ पहुंच चुके हैं, जिनमें साढ़े सात लाख ईरानी ज़ायरीन भी शामिल हैं। यह ऐसी स्थिति में है कि जमीनी और हवाई रास्तों से विदेशी ज़ायरीन के इराक़ पहुंचने का सिलसिला जारी है।
अहले बैत (अ) समाचार एजेंसी अबना की रिपोर्ट के अनुसार अब तक दस लाख से अधिक विदेशी ज़ायरीन इराक़ पहुंच चुके हैं, जिनमें साढ़े सात लाख ईरानी ज़ायरीन भी शामिल हैं। यह ऐसी स्थिति में है कि जमीनी और हवाई रास्तों से विदेशी ज़ायरीन के इराक़ पहुंचने का सिलसिला जारी है।
शनिवार तेरह दिसंबर बराबर बीस सफ़र रसूल के नवासे हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और आपके बहत्तर 72 साथियों का चेहलुम है। कर्बला के शहीदों का चेहलुम कोई रस्म या मजलिस का मामूली सा कार्यक्रम नहीं है बल्कि प्रामाणिक आंकड़ों के अनुसार यह दुनिया का सबसे बड़ा प्रोग्राम है जिसमें लगभग चार करोड़ लोग हिस्सा लेते हैं कि जो दीन की बुनियाद और अध्यात्म पर आधारित है कि जिस पर इस समय सारी दुनिया का ध्यान लगा हुआ है।
इराक़ संकट और दाइश जैसे तकफ़ीरिय और आतंकवादी गिरोह के हाथों आम इराकी नागरिकों के नरसंहार के मद्देनजर इमाम हुसैन अ. का चेहलुम एक बेहतरीन और उचित अवसर है कि इस्लाम का वास्तविक और रहमान चेहरा दुनिया वालों के सामने पेश किया जाए जो इससे बहुत अलग है जिसे दाइश और अन्य तकफ़ीरिय गिरोह पेश कर रहे हैं।
चेहलुम के इस भव्य और बेमिसाल अवसर को इराकी जनता तो मनाती ही हैं। जबकि ईरान, पाकिस्तान, भारत, अफगानिस्तान तथा अमेरिकी और यूरोप से लेकर दक्षिण पूर्व एशिया तक और तुर्की से लेकर मध्य एशिया के देशों तथा फारस की खाड़ी के अरब देशों के लाखों लोग भी इस अवसर पर करबला में उपस्थित होते हैं।
उसी हिसाब से इराकी अधिकारियों ने आशूर के शहीदों के चेहलुम के अवसर पर भव्य भीड़ में हिस्सा लेकर ख़ुद को ज़ायरीन की मेजबानी के लिए तैयार कर लिया है।
करबला के ट्रस्टी शेख़ महदी करबलाई ने चेहलुम के इस मौजें मारते हुए समुद्र की ओर इशारा करते हुए इस भीड़ को पूरी दुनिया में एक शांतिपूर्ण और भव्य भीड़ बताया है। उन्होंने कहा कि अमेरिका और उसके पालतू संगठन की धमकियों के बावजूद ज़ायरीन समुद्र की ठाठें मारती हुई लहरों की तरह लगातार करबला की ओर वढ़ते चले आ रहे हैं। जो कि ज़ायरीन की बहादुरी और शांतिपूर्ण पहलू को प्रदर्शित कर रही है।
इमाम हुसैन अ. का चेहलुम दुनिया भर में अपने चाहने वालों के बीच एकता का केंद्र बन गया है क्योंकि सभी लोग इस बात पर विश्वास रखते हैं कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की हक़ की आवाज़ जो आशूर के दिन आपने उठाई थी वह आज भी गूंज रही है।
चेहलुम के इस अवसर पर जो भावना और फ़लसफ़ा हाकिम है वह जिहाद और शहादत और आशूर का सिलसिला है।
चेहलुम के मौके पर मुसलमानों की महानतम भीड़, एक इस्लामी प्रतीकात्मक आंदोलन है जो कि अहलेबैत अलैहिस्सलाम के चाहने वालों के लिए शक्ति का सूचक बन गई है और इसका एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि इमाम हुसैन अ. के साथ श्रद्धा और उनसे मुहब्बत रखने वाला हर व्यक्ति इस बात की कामना करता है कि चेहलुम के अवसर पर कर्बला पहुँच जाए।(abna.com)