शुक्रिया शायर कैफ़ी आज़मी का कि हमारे घर में भुसावली केले की पौध लगी और खूब केले खाने को मिले।
हुआ ये की 1977 मैं मशहूर शायर और गीतकार कैफ़ी आज़मी का एक टेलीग्राम मेरे वालिद मरहूम सहाफी बिशन कपूर को मिला की वे अपने गांव मिजवा आजमगढ़ के लिए भुसावली केलों की पौध लेकर लखनऊ पहुंच रहे है।
कैफ़ी आज़मी लखनऊ आए और अमीनाबाद मैं होटल गुलमर्ग में ठहरे थे। जब मुख्यमंत्री राम नरेश यादव को पता चला कि उनके शहर के कैफ़ी आज़मी लखनऊ में हैं तो दूसरे दिन सुबह नाश्ते पर उनको और मेरे वालिद को बुलाया।
अब मेरे वालिद और कैफ़ी आज़मी दोनो लोग मुख्यमंत्री आवास राम नरेश यादव जी से मिलने गए।
सुबह नाश्ते पर शायरी, उर्दू भाषा और कैफ़ी आज़मी के गांव मिजवा के विकास पर खूब दिलचस्प वार्ता हुई।
मुख्यमंत्री आवास से जब कैफ़ी आज़मी और मेरे वालिद होटल गुलमर्ग की सीढी चढ़ रहे थे तो कैफ़ी का पैर डगमगा गया और वे गिर गए।
किसी तरह मेरे वालिद कैफ़ी आज़मी को।कार में केजी मेडिकल कॉलेज डा मिनी गोयल के पास गए। कैफ़ी।आजमी के पैर का एक्सरे हुआ और पता चला की हड्डी टूट गईं थी।
इस चक्कर में कई महीने कैफ़ी आज़मी को केजी मेडिकल कॉलेज की स्पेशल कॉटेज मैं रहना पड़ा। जितने दिन कैफ़ी आज़मी मेडिकल कॉलेज में रहे हर शाम शायरी की महफिल और तरह तरह के खाने की।दावत रहती थी।मुझे भी अपने वालिद के साथ इन महफिलों और दावतों मैं रहने का मौका मिला।
अब जो भूसवली केलों की पौध जो मिजवा गांव के लिए आई थी वो मेरे वालिद को मिली जो घर की बगिया मैं खूब फली और हमको केले खाने को मिले। हम जब भी भूसवली केले खाते तो कैफ़ी आज़मी को याद जरूर करते ।
जब कैफ़ी ठीक हो गए और एक दिन शौकत आंटी के साथ घर आए तब मेरी वालिदा ने उनके के लिए भूसवली कच्चे केले के कबाब और भरता बनाया जो उन दोनो को बहुत पसंद आए।और तो और केले के फूल की।सब्जी भी बंगाली पड़ोसी से पूछ कर बनी थी।