हमने ख़ुद गुज़ारिश की थी कि यह तस्वीर ले लें । उन्होंने मुस्कुराकर कहा,क्यों नही । वजह यह थी कि इस तस्वीर में हम उस पल को क़ैद करना चाहते थे,जो प्रो.रूपरेखा वर्मा जी कह रही थीं । हॉल में जैसे ही हम पहुँचे, सीधे उनसे मिलने गए । वह मिलते ही बोली आपको एक चीज़ देनी थी । फिर अपने बैग से एक बड़ी सी डायरी निकाली और दी,यह कहते हुए की आप इसमें अपने अनुभव लिखियेगा ।
यह डायरी इसलिए ख़ास हो गई मेरे लिए,क्योंकि इसका इतिहास बड़ा खूबसूरत है । रूपरेखा जी ने बताया कि बहुत पहले उन्होंने यह डायरी अपने अनुभव लिखने के लिए ली थी । ज़िन्दगी ने इतना समय खाली ही नही छोड़ा की इसपर कुछ दर्ज करने की फुर्सत मिलती मगर इसे हमने आपके लिए दोबारा निकाला । आप बहुत खूबसूरत अच्छा अच्छा लिखते हैं । आप इसपर अपना अनुभव लिखिए । हम नही लिख सके मगर आप लिखिए ।
अब बताइये हमारी सदी की एक सबसे मज़बूत और प्रखर आवाज़ । हमेशा हर मुद्दे पर अपनी मज़बूत उपस्थिति देने वाली रूपरेखा जी अगर आपको कुछ दें,वह भी यह कहकर की उनकी इच्छा थी कि वह यह करती मगर अब आप कीजिये । बताइये ज़िन्दगी में इससे बड़ा तबर्रुक क्या होगा । हमारा हर लिखा उनके कदमों में है । ज़िन्दगी में हम उनके चौथाई भी मेहनत नही कर सकते और इतनी हिम्मत भी नही जितनी उनमें है ।
इस एक डायरी ने हमें इतना इत्मीनान तो दे दिया कि मेरा लिखा फ़िज़ूल नही है और हल्का नही है । जिसपर रूपरेखा जी की मोहर लग चुकी हो,उसकी अहमियत हम भी समझते हैं । हमने उनसे उसी वक़्त कहा था कि इस डायरी और आपके साथ हमें फ़ोटो भी चाहिए,क्योंकि हम इसकी अहमियत को खूब समझते हैं ।
हमारे नाना मुंशी नवल किशोर प्रेस के बड़े महत्वपूर्ण हिस्सा थे,उन्होंने बताया था कि जब कोई बड़ा,जिसका इतिहास भविष्य में पढ़ाया जाएगा । उसके हाथ से ली हुई चीज़ पर उसकी मोहर ले लेना । आने वाले ज़माने में वह भी इज़्ज़त पाएगा । बस फिर हमने मौका नही गवाया,क्योंकि मेरी नज़र में रूपरेखा जी के पहाड़ जैसे काम,एक रोज़ पढ़ाए जाएंगे और यही बहाने चुटकी भर इज़्ज़त मेरी झोली में भी आ ही जाएगी ।
बहुत शुक्रिया रूपरेखा जी,आपकी यह मुहब्बत,यह आशीर्वाद, यह अपनापन हमें सीधे और सही रास्ते पर रखे…