लखनऊ, उर्दू शाइरी के आशिकों के लिए एक अच्छी खबर है. आगामी 18 अक्टूबर को शहर में दास्तानगोई की बिल्कुल नई और नायाब महफिल सजने जा रही है. नई इसलिए कि तिलिस्म और अय्यारी की पारंपरिक दास्तानों से एकदम अलग ये दास्तान उर्दू के कीट्स कहे जाने वाले लोकप्रिय शायर मजाज़ लखनवी की ज़िंदगी और शाइरी पर आधारित होगी, और नायाब इसलिए कि ये पहली बार होगा कि मजाज़ की जिंदगी और शाइरी को दास्तानगोई के जरिए पेश किया जाएगा. साथ ही ये पहला मौका होगा जब किसी दास्तान का प्रीमियर यानी सबसे पहला शो लखनऊ में हो रहा हो.
18 अक्टूबर को शाम सात बजे संगीत नाटक अकादमी के प्रेक्षागृह में इस दास्तान को दिल्ली के अकित चड्ढा और लखनऊ के हिमांशु बाजपेयी मिलकर सुनाएंगे. गौरतलब है कि इस दास्तान के ज़रिए हिमांशु बाजपेयी लखनऊ के पहले पेशेवर जदीद दास्तानगो के बतौर पदार्पण करेंगें. हिमांशु बाजपेयी ने कहा-‘मजाज के जन्मदिन की पूर्व संध्या पर पेश की जा रही ये दास्तान असल में मजाज़ को एक श्रद्धांजलि है. मजाज़ को लखनऊ से बेपनाह मोहब्बत थी, वो अपने नाम के आगे लखनवी लिखते थे. इसीलिए इस दास्तान के प्रीमियर के लिए लखनऊ को चुना गया.’ मजाज़ लखनवी की ज़िंदगी, शायरी और शख्सियत के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती ये दास्तान तकरीबन एक घंटे की होगी.
इसे दास्तानगोई के उस्ताद महमूद फारूकी के मार्गदर्शन में तैयार किया गया है. दास्तान का आयोजन युवाओं के समूह बेवजह की तरफ से हो रहा है. ٰआयोजन में प्रवेश निशुल्क और बिना किसी पास के है.
आयोजन के बारे में मशहूर शाइर मुनव्वर राना ने कहा- ‘मजाज़ उर्दू के सबसे चहेते शाइर थे. और मजाज़ के सिलसिले में अगर दो दास्तानगो अपनी ज़बान खोलेंगें तो फिज़ा में रस घोलेंगे. हिमांशु बाजपेयी का मजाज़ से इश्क़ मशहूर है. अंकित चड्ढा के साथ मिलके वो यकीनन एक दिलचस्प दास्तान सुनाएंगे.’
गौरतलब है कि दास्तान उर्दू में कहानी सुनाने की कला है. जो १९२८ में आखिरी दस्तांगो मीर बाक़र अली के देहांत के साथ ख़त्म हो चुकी थी लेकिन २००५ में महमूद फारूकी ने दास्तानगोई के फेन को दोबारा जिंदा करने की मुहीम शुरू की. पिछले चार पांच साल में शहर में दास्तानगोई के बेशुमार शो हुए हैं और इसके चाहने वालों की संख्या लगातार बढ़ी है. ऐसे में इस नई दास्तान को लेकर भी दास्तानगो काफी उत्साहित हैं.
दास्तानगो अंकित चड्ढ़ा ने कहा- ‘2012 में हमने मंटो की ज़िंदगी पर आधारित एक दास्तान लखनऊ में की थी जो बहुत हिट रही थी. उसी के बाद से मैं और हिमांशु मिलकर लखनऊ में मजाज़ की ज़िंदगी पर आधारित दास्तान करना चाहते थे. आख़िरकार दो साल के इंतज़ार के बाद ये सपना पूरा हो रहा है. खुशी की बात ये भी है कि मोहम्मद हुसैन जाह, अंबा प्रसाद रसा और अहमद हुसैन क़मर जैसे दास्तानगोई के उस्तादों के इस शहर को हिमांशु के रूप में अपना पहला प्रोफेशनल जदीद (आधुनिक) दास्तानगो मिल रहा है.’