‘मिर्ज़ा हादी रुसवा’ ( 1857 – 1931 ) पर ‘शाम-ए अदब’ का आयोजन शुक्रवार 25th अक्टूबर को लखनऊ सोसाइटी द्वारा जयशंकर सभागार, कैसरबाग में आयोजित किया गया. ‘उमराव जान अदा’ नॉवेल को उर्दू की सबसे अच्छी माना जाता है जबकि वो 100 साल से ज्यादा पुरानी है, इसका सारा श्रेय उसके लेखक मिर्ज़ा हादी रुसवा को जाता है जो कई ज़बानों के माहिर थे।
रुसवा ने कई किताबे लिखी लेकिन उन्हें सबसे ज्यादा ख्याति उमराव जान को ही प्राप्त हुई जो उर्दू की सबसे ज़्यादा पढ़ी जाने वाली नॉवेल है। शारिब रुदौलवी ने ये बात सब के सामने रखी कि उमराव जान में 19वी सदी का लखनऊ पूरी तरह से उजागर हुआ है और यही इस नॉवेल की खूबी है। मिर्ज़ा शफ़ीक़ हुसैन ने हादी रुसवा के साथ साथ मुज़फ्फ़र अली की ज़िन्दगी को भी सबके सामने पेश किया कि कैसे कोई शख्स ऐसी उम्दा फ़िल्म बना सकता है।
मुज़फ्फ़र अली, जिन्होंने उमराव जान फिल्म बनाई ने कहा कि काफी सालो तक उन्होंने इस टॉपिक पर रिसर्च किया तब जाकर ये फिल्म बन सकी और इसमें उमराव जान के साथ पूरी लखनवी तहज़ीब की झलक है। फ़र्रुख जाफ़र जिन्होंने फिल्म में रेखा की माँ का किरदार निभाया था, ने बताया कि कैसे इस फिल्म में हर बारीक़ पहलु पर काम किया गया और ये सब एक अच्छी टीम वर्क का नतीज़ा है । Aaisha Siddiqui ने कहा की नॉवेल की ज़बान बहुत ख़ूबसूरत है, जिसमे अदब के साथ वो अल्फाज़ इस्तेमाल हुए है कि हर कोई आसानी से किरदार का लुत्फ़ उठा सकता है। ये सारा श्रेय रुसवा को ही जाता है जिन्होंने इतनी सादगी से हर पहलु को सामने रखा।
वसीम बेग़म ने बताया कि उमराव जान न सिर्फ़ एक क़िरदार है बल्कि लखनऊ की तहज़ीब का आइना है, ये उस समाजी ज़िन्दगी को दर्शाता है जिसमे अदब, नृत्य और संगीत को समाया गया है। हबीब मूसवी ने रुसवा के घर के बारे में बताया की वो गोला गंज में रहते थे और वो क्रिस्चियन कॉलेज में पढ़ते थे, पर उनकी अब ऐसी कोई निशानी नहीं बची है। राजीव प्रकाश साहिर ने रुसवा की ज़िन्दगी और उनके साहित्यिक कारनामों पर रोशनी डाली। अतिफ़ हनीफ़ रुसवा की शायरी को सेमिनार में पेश किया और उनकी नॉवेल से जुड़े पहलुओ को उजागर किया। UNESCO ने अब तक उर्दू की 13 किताबों का तर्जुमा किया है, जिसमे उमराव जान भी शामिल है।
लखनऊ सोसाइटी के संस्थापक शमीम ए आरज़ू ने बताया की शाम-ए अदब का ये सिलसिला ऐसे ही लगातार चलता रहेगा और हम लोग नवंबर में फिर मिलेंगे अदब की एक और शक्सियत पर गुफ्तगू करने के लिये।