नजर अब्बास
दिनभर की मशक्कत के बाद सौ रूपए की मजदूरी
लखनऊः लखनऊ में जरदोजी का कार्य करने वाले कारीगर अपनी उंगलियो के हुनर से जहां सूट और साड़ी को सजाते और सवारते है। वहीं बिचौलिए और व्यापारी उन्हे मजदूरी के नाम पर चन्द रूपए ही देते है। इन्ही चन्द रूपए से वह अपने परिवार का पालन पोषण करते है ।
राजधानी के पुराने क्षे़त्रो मे बडें पैमाने पर जरदोजी़ का कार्यहो रहा हैं । तथा बड़ी संख्या मे लोग इससे जुड़े है। साड़ी पर जरदोंजी का कार्य करने वाले काजमैन के निवासी शाहआलम (20) नूरबाड़ी के रफीक (30) दरगाह के असकरी अब्बास (35) तथा अन्य जरदोजी़ का कार्य करने वाले कारीगरो ने बताया कि वह सुबह सात बजे से रात तक लगभग 8 बजे तक 13 घटें साड़ी मे कढ़ाई व जरदोजी का कार्य करते है।तब कहीं जाकर 100 रूपए मजदूरी मिलती है। वह भी लगातार नहीं मिलती है। क्योंकि बीच बीच में जब यह कार्य बन्द हो जाता है। तो परिवार की रोजी रोटी के लाले पड़ जाते है। इन कारीगरो का कहना है कि हम लोग अपनी हुनर और कला से कढ़ाई करके साड़ी को एक आकर्षक रूप् प्रदान करते है। जबकि बिचौलिए और व्यापारी इससे कई गुना लाभ कमाते है। और हमे मजदुरी के नाम पर चन्द रूपए ही मिलते है। इस प्रकार हम दिहाड़ी पर मजदुर के समान कार्य करते है। इस प्रकार हमारा व्यापारियो और व मालिको द्धारा शोषण किया जाता है।
पुराने लखनऊ के अधिकतर क्षेत्रो मे बच्चे हाथो मे कलम और किताब की जगह सूई धागा और मोती लिए अड्रडो पर काम कर रहे है । उनकी आँखो मे ख्वाब नही जरदोजी की डिजाइन है ं। आरी जरदोजी के अडडो पर इन मासूमो का बचपन का बचपन सिसक रहा है । यह अपने परिवार की जिम्मेदारी लिए हुए है । खास बात तो यह है कि इस काम मे लड़को के साथ -साथ लड़किया भी स्कूल जाने के बजाए इस काम और हुनर को सिख रही है। परिवार वाले आर्थिक तंगी की वजह से बच्चो को यह कार्य और हुनर सिखाते है। ताकि वह मेहनत करके रूप्ए कमाने लगे। शुरूआत मे इनको साप्ताहिक 20-30 रूपए मिलते है। फिर वह परिपक्व होकर अधिक कमाने लगते है। परिवार की गरीबी के कारण ही नावेद ने अपने बेटे सैफ(12) को इस काम मे लगाया है। यह खाली घूमने से बच्चो के लिए अच्छा है। जबकि अभी तक बालक्ष्म के अधिकारियो का इस ओर कोई ध्यान नही है।
जबकि जरदोजी का कारखाना चलाने वाले जाहिद अहमद से पूछा गया कि तो वह बताते हैं कि कढ़ाई में तथा सामृग्री लगाने में ही अधिक लागत आ जाती है। जबकि व्यापारी से लागत से अधिक चन्द रूपए ही मिलते है। जिससे मुझे बचत बहुत कम ही हो पाती है।
इनके कल्याण के लिए इदारा-ए-सकीना के नसीर हुसैन रिज़वी इनके उज्जवल भविष्य के लिए काफी समय से लगातार धरना प्रर्दशन करके इसकी माँग कर रहे है। उनका कहना है कि इनका बीपीएल कार्ड बनाए जाए । इनके बच्चो के शिक्षा के लिए योजना सरकार द्धारा लाई जाए ।
इस कार्य में लगे हुए कारीगरो तथा लोगो का कहना कि सरकार इसे उघोग का दर्जा दे दे तो इसे एक नई पहचान मिलेगी । और कारीगरो को उचित मजदूरी मिलेगी । जिससे उनका परिवार अच्छा जीवन यापन कर सकेगा । तथा उनके बच्चे भी पढ़ लिख सकेगे । तथा उनका भविष्य उज्जवल हो सकेगा।