प्रदीप कपूर
मशहूर संगीतकार नौशाद अली, जो हमारे शहर लखनऊ के थे , की आज बरसी है। तो हमने सोचा कि उनको याद किया जाय।
एक जमाना था कि हमको नौशाद साहब से मिलने,जानने और सुनने का मौका मिला।
ये वो जमाना था जब हम अपने चचा जानेमाने शायर , गीतकार व उर्दू ब्लिट्ज के एडिटर हसन कमाल के बांद्रा मुंबई के घर में ठहरते थे।
नौशाद अली साहब रोज सुबह हसन कमाल साहब के घर मॉर्निंग वॉक करके आते थे और चाय पर गपशप करके एक घंटा बैठ कर चले जाते थे। हमको भी मौका मिलता था नौशाद साहब के साथ उनके जमाने के लखनऊ और लोगो के बारे में जानने का मौका मिलता था।
नौशाद साहब बताते थे कि तरह उनके मित्र और पत्रकार अमीन सलोंवी अपनी साइकिल पर शहर घूमते थे समाचार इकठ्ठा करके अपनी न्यूज सर्विस के जरिए अखबारों तक पहुंचे थे। उस जमाने में वे उर्दू के बड़े पत्रकार थे।
इसी तरह नौशाद साहब अपने मित्र नसीम इन्हौनलवी साब के बारे में बताते थे जो खुद एक बड़े पब्लिशर थे और किताबें छापते थे।
बहुत कम लोगो को पता होगा कि नौशाद साहब खुद बहुत बढ़िया खाना पकाते थे। हमको उनका पकाया हुए खाना खाने का सौभाग्य मिला।
May 5: Music magician Naushad said goodbye to the world https://t.co/lvNzDQO3QX
— Netional Dastak (@NetionalD) May 5, 2022
हुआ यह कि आज से 35 साल पहले रमज़ान के मौके पर अपने चचा हसन कमाल के घर पर रूके हुए थे। हसन कमाल साहब ने कहा कि वे रोज़ा रखना का मन बना रहे पर अकेले ही रखना होगा तब हमने कहा कि हम उनका साथ देंगे पर सुबह सेहरी के वक़्त उठाना पड़ेगा।
Remembering the undisputed doyen of Indian film Music, Master of Raga based melodies, music composer, #Naushad
Mohammad Rafi singing live "Suhani Raat Dhal Chuki" from Dulari (1949) with Naushad introducing and conducting orchestra#MohdRafi #ShakeelBadayuni #Suresh #Madhubala pic.twitter.com/pLTJh2uxtv
— Movies N Memories (@BombayBasanti) May 5, 2022
हमने पांच रोज़े रखे और शाम को इफ्तार उर्दू ब्लिट्ज के दफ्तर में होता था जिसमें इंग्लिश और हिंदी ब्लिट्ज का पूरा स्टाफ आता था। एडिटर करांजिया भी ये जानकर खुश हुए की हम रोज़े से थे।
नौशाद साहब को जब पता चला तो वे खुद एक शाम मटन के कोफ्ते बनाकर खुद लेकर आए और साथ खाना खाया।
नौशाद साहब लखनऊ आते तो हम सब काम छोड़ कर दिन रात उनके साथ रहते थे।
ये 1992 की बात है हम नौशाद साहब से मिलने मीराबाई मार्ग पर स्टेट गेस्ट हाउस मिलने गए तो वे बोले कपूर साहब जब कोई रिश्तेदार या मित्र बाहर से आता होगा तो आप लखनऊ घूमने जाते होंगे। चलिए आज हम आपको लखनऊ अपनी नजर से घुमाते है जो हमने काफी साल पहले छोड़ा था।
हम और नौशाद साहब एक कार में बैठकर जब रवाना हुए तो हर इमारत को अपनी नजर से बताने लगे। मॉडल हाउस के नुक्कड़ पर गाड़ी रोककर नौशाद साहब ने बताया कि वहां एक बुजुर्ग जो टायर ट्यूब पंक्चर बनाते थे और साइकिल किराए पर देते थे कि दुकान थी। नौशाद साहब ने बताया कि वो उनकी नाटक मंडली को।पैसे देते थे कि बच्चे लोग नाटक कर सकें।
उसके बाद हम बड़े इमामबाड़े गए तो नौशाद साहब बाहर ही जो नजारा देखा तो चौंक गए। उनको कुछ खाली खाली से दिखाई पड़ा। यहां ये बताना जरूरी है कि इमामबाड़े की बाहर की तरफ गेट के दोनों ओर झरोखे थे जहां कइ पुश्त से परिवार के परिवार रहते थे और बोरी के टाट के पर्दे पड़े रहते थे। लेकिन 1991 सरकार ने सुंदरीकरण के लिए उनका हटा दिया था।
नौशाद साब शायर भी तो उन्होने तुरंत कहा कहां गई वो बस्ती कहां गए वो लोग।
इमामबाड़ा घूमने के बाद हम लोग गोल दरवाजा पहुंचे और अखबारी गेट की तरफ जाने के लिए हैं दाखिल हुए।
नौशाद साहब ने बताया कि सड़क के दोनों तरफ एक जमाने में कोठे हुए करते थे। काफी दूर जाकर एक चबूतरे पर नौशाद साहब रुक गए और बताया की ऊपर एक बाई का कोठा था जो पक्के गाने के लिए मशहूर थी।
नौशाद साहब ने बताया कि उनकी उम्र कम थी तो ऊपर जा नहीं सकते थे और उनको संगीत और गाने सुनने का शौक था जो घर पर बुरा माना जाता था। तो नौशाद साहब घंटो उसी चबूतरे पर बैठ कर बाई का गाना सुनते थे।
जब हम और नौशाद साहब वहां थे लोगो ने उनको पहचानने लगे और थोड़ी देर में 100 से ज्यादा लोग आगाए की नौशाद साहब उनके बीच में हैं। सब लोग नौशाद साहब को अचानक अपने बीच पाकर खुश हुए तब हमने चाय पी।
फिर जब आगे गए तो नौशाद साहब असगर अली मोहम्मद अली की तारीखी कोठी के सामने रुक कर उसके बारे में विस्तार से बताने लगे।
जब आगे बड़े तो मशहूर टुंडे की दुकान पहुंचे वहां भी लोगो ने नौशाद साहब को घेर लिया। जो कबाब बना रहा था वो भी नौशाद साहब को देख कर घबरा गया। उसने नौशाद साहबके लिए खास कबाब और परांठा बनाया।उस मोहब्बत की बात ही कुछ और थी।
अखबरी गेट के पास की तमाम इमारतों के बारे में नौशाद साहब ने तफसील से बताया। और इस तरह उनके साथ घूम कर स्टेट गेस्ट हाउस वापस पहुंच गए। वो नौशाद साहब के साथ लखनऊ का सफर आज भी उतना याद है जैसे कल की बात हो।
Death anniversary of Naushad Ali ji (5th May 2006)
His greatest contribution is in the adaptation of classical musical for movie song, also one of first to introduce sound mixing and the separate recording of voice and music tracks in playback singing.
Pic from Google image pic.twitter.com/xOGGPD86NN— D Prasanth Nair (@DPrasanthNair) May 5, 2022
नौशाद साहब कें साथ बैठकी होती थी वो बताते थे कि जिन फुटपाथ पर रात गुजारी उसके सामने के पिक्चर हॉल में उनकी फिल्म रिलीज हुई तो उस खुशी का कोई मुकाबला ही नही था। वे बताते थे कि किस तरह मुगले आजम के लिए बड़े गुलाम अली साहब को कैसे मनाया।
एक बार हम नौशाद साहब को छोड़ने अमौसी हवाई अड्डे पर गए थे और हवाई जहाज़ के जाने में काफी समय था तो हम लोग इंतजार कर रहे थे। तभी अचानक एक नौजवान और उसके साथ कुछ लोग थे। उस नवजवान ने आते ही नौशाद साहब के पैर छुए और हाथ जोड़ कर परिचय दिया और कहा मेरा नाम उदित नारायन है और कुछ गाने का प्रयास कर रहा हूं शायद मेरा एक गाना पापा कहते है बड़ा नाम करेगा शायद आपने सुना हो। तब नौशाद साहब ने आशीर्वाद दिया और कहा पूरा हिंदुस्तान उदित नारायन का गाना गा रहा है।
Today is death anniversary of Mr Naushad Ali (26 Dec 1919 – 05 May 2006). pic.twitter.com/cdE4mgUhie
— Chinmay Das (@cdas1711) May 5, 2022
नौशाद साहब हमेशा कहते थे कि पश्चिम के संगीत में शरीर हिलता है और हिन्दुस्तानी संगीत आत्मा को छूता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )
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