अजान पर पाबंदी का अगर कोई शासनादेश है तो डीएम उसे लिखित रूप में जारी क्यों नहीं करते.लखनऊ 25 अप्रैल 2020। गाजीपुर डीएम के अजान पर रोक के फरमान पर रिहाई मंच ने कहा कि जिलाधिकारी आखिर यह आदेश लिखित में क्यों नहीं जारी करते।

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वो इसलिए ऐसा नहीं कर रहे हैं क्यों कि वो खुद जानते हैं कि उनका यह कदम गलत है। मंच ने गाजीपुर की बारा गांव की जामा मस्जिद के इमाम मोहम्मद जाकिर हुसैन से बात की तो उन्होंने बताया कि कल रात नौ बजे के करीब चौकी इंचार्ज सिपाहियों के साथ आए और कहा कि डीएम साहब का आदेश है अज़ान नहीं होगी। इस पर जब इन्होंने बोला की दो वक्त की तो होगी तो पुलिस ने कहा कि बाद में आ गया है कि अज़ान नहीं होगी। जब पूछा कि अज़ान कैसे होगी तो चौकी इंचार्ज ने कहा कि नहीं होगी। वे बताते हैं कि कल शाम अज़ान हुई थी और आज सुबह ही सिपाही मस्जिद के दरवाजे पर बैठे थे।
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि एक जिलाधिकारी को इस तरह का गैर जिम्मेदारीपूर्ण मौखिक आदेश देने से पहले यह सोचना चाहिए था कि इसका कितना व्यापक असर समाज पड़ेगा पर। वहीं एक प्रतिनिधिमंडल के मिलने के बाद जिला प्रशासन ने दो वक्त की अजान पर सहमति जताई थी। सहमति के बाद फिर अजान पर पाबंदी का मौखिक आदेश साफ करता है कि ये उनका कोई आदेश न होकर सत्ताधारी पार्टी के नेताओं का आदेश है जिसको डीएम सिर्फ लागू करवा रहे हैं।
हाईकोर्ट अधिवक्ता संतोष सिंह ने कहा कि गाजीपुर जिलाधिकारी का आदेश विधि सम्मत नहीं है। केंद्र सरकार ने मस्जिदों में अजान पर रोक नहीं लगाई है। डीएम के ऐसे मौखिक आदेश ने संविधान के मूल्यों को तार-तार कर दिया।
रिहाई मंच नेता शकील कुरैशी ने कहा कि महामारी के संकट से लोगों का ध्यान हटाने के लिए लगातार हर स्तर पर साम्प्रदायिकता का खेल जारी है। ताज़ा मामला अज़ान को लेकर है। लॉक डाऊन के बाद धार्मिक स्थलों पर पूजा और इबादत की मनाही है। सीमित संख्या में सांकेतिक पूजा या इबादत की छूट सरकारों ने दे रखी थी। अज़ान भी उसमें से एक है।
अज़ान से कोरोना के खिलाफ अभियान अवरुद्ध नहीं होता। लेकिन गाज़ीपुर के जिलाधिकारी ने नया फरमान जारी करते हुए अज़ान पर पाबंदी लगाने का घोषणा की है। दिल्ली की एक वायरल वीडियो में पुलिस वालों को अज़ान की मनाही करते हुए सुना और देखा जा सकता है। हालांकि दिल्ली पुलिस प्रशासन ने ऐसे किसी दिशा निर्देश से इनकार किया है। गाज़ीपुर जिला अधिकारी के आदेश की भी यही स्थिति है। इसके समर्थन में कोई शासनादेश भी मौजूद नहीं है। दरअसल इस तरह के फरमान का मकसद साम्प्रदायिक बहस को जारी रखते हुए शासन और प्रशासन की अक्षमताओं से चर्चा के रुख को मोड़ना होता है।
द्वारा-
राजीव यादव
रिहाई मंच
9452800752