अमरीकी विदेश मंत्रालय ने तुर्की पर प्रतिबंध लगाए हैं. तुर्की ने अमरीका के एंड्र्यू ब्रुसन नाम के एक पादरी को अक्टूबर 2016 में गिरफ़्तार कर लिया था. एंड्र्यू दो सालों तक तुर्की की जेल में रहे. एंड्रूयू को अब भी तुर्की ने छोड़ा नहीं है.
ट्रंप प्रशासन तुर्की के इस क़दम से काफ़ी ख़फ़ा है और आर्थिक प्रतिबंध की एक वजह ये भी बताई जा रही है. अमरीकी प्रतिबंध से तुर्की के बाज़ार पर कई प्रतिकूल असर पड़े हैं. इस हफ़्ते दोनों देशों के बीच बातचीत भी हुई, लेकिन मसले सुलझ नहीं पाए.
क्या कलह की जड़ केवल पादरी?
नहीं. मसला केवल पादरी का गिरफ़्तार होना नहीं है. तुर्की को छोटी अवधि वाले विदेशी फंड का लाभ मिलता रहा है. ऐसा यूरोप और अमरीका की मौद्रिक नीति में उठापटक के कारण अधिक रिटर्न की चाहत में निवेशकों द्वारा तुर्की के उभरते बाज़ार में पैसे लगाने से होता था.
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि तुर्की को विकसित अर्थव्यवस्था वाले देशों से व्यापक पैमाने पर संपत्ति ख़रीद स्कीम के तहत फ़ायदा मिलता रहा है. लेकिन हाल के वर्षों में इसमें गिरावट आई है. अमरीका और यूरोज़ोन का तुर्की को लेकर रवैया बदला है. तुर्की में ऐसे निवेश से आने वाले पैसे अब ना के बराबर हो गए हैं.
गुरुवार को जारी एबीएन एमरो की एक रिपोर्ट में निवेशकों ने चिंता जताई है कि तुर्की वार्षिक विदेशी फंड 218 अरब डॉलर नहीं जुटा पाएगा. इसमें तुर्की की कंपनियां भी शामिल होती हैं जिन्हें विदेशी मुद्रा की एक निश्चित राशि रखनी होती है. तुर्की के विदेशी मुद्रा भंडार में कमी लगातार बढ़ रही है.