Hafeez Kidwai
यह दुनिया का सबसे कठिन काम है। जब आपको पूरा यक़ीन हो कि आपका रास्ता ही सही रास्ता है मगर भीड़,वह भी कौन सी भीड़,जिसमें अपने शामिल हों ।
उनसे कह पाना की हम तुममें से नही हैं, तुम सब ग़लत सोच रहे हो । मगर यह कहा कैसे जाए,पहले ख़ुद में यह यक़ीन तो लाया जाए ।
मेरी आदत है, जो बात हमें समझ आ रही है । उसे मान लेता हूँ,सामने वाले कि बात में अगर उसका तर्क नही है । तब अपनी बात पर टिक जाता हूँ मगर जब सामने भीड़ आती है । हर तरफ से उंगली उठती हैं । दिल करता है कि आंख बंद कर लूं,इनसे छिप जाऊं मगर यह तो कोई हल नही है । शुतुरमुर्ग बनकर भी भला कोई बचा है । तो रास्ते दो ही बचते हैं या तो भीड़ में शामिल हो जाओ या फिर अपनी बात के साथ मज़बूती से खड़े हो जाओ ।
युद्ध,उन्माद, हिंसा, नफरत,अत्याचार,अनाचार,आतंक,प्रताड़ना,साम्प्रदायिकता,कट्टरता,डिस्क्रिमिनेशन के ख़िलाफ़ मैं हमेशा रहा हूँ । चाहे जितना उन्माद फैल जाए,प्रेम और एकता की बात तो करी ही है । दुश्मन की मौत पर हँसा नही हूँ,बल्कि गम्भीर हुआ हूँ कि काश यह सही रास्ते पर होता, तो कितना अच्छा होता । हमने जिसे अपना आदर्श माना है, वह हर स्थिति में,हर परिस्थिति में प्रेम,एकता और अहिंसा की बात करते थे । हमें भी तो यही करना है और आखरी सांस तक करना है ।
मैं रोज़ खुद को देखता हूँ,कितनी ही बार लगता है, अब गिरा की तब गिरा । उसूलों से डिगता हूँ तो कांप जाता हूँ । बाज़ार में चमक और पैसे की गूंज में थिरकते अपने साथियों को देखता हूँ तो लगता है, क्या ग़लत रास्ते पर हूँ । मगर फिर दिल कहता है, ग़लत तो नही हूँ,अगर इनकी तरफ चला गया,तब गलत होऊंगा । मेरे अंदर की बुनावट ऐसी नही है, मुझे तो कम से कम खुद को बचाए रखना है ।
भीड़ के प्रकोप से,भीड़ की तालियों से,भीड़ के उत्साह से,भीड़ के विछोभ से,भीड़ के साहस से,भीड़ के डर से,भीड़ की मोहर से ख़ुद को बचाए रखना है । हमें भीड़ नही,रास्ता देखना है ।।हमें सरों की गिनती करके कुर्सी पर नही बैठना है, हमें हर सर के अंदर झांककर उसमें बैठना है ।
इससे मिलती जुलती तस्वीर मेरे कमरे में लगी रहती है । वह उसकी है, जो जर्मनी में हेल हेल नही कर रहा था,भीड़ के समंदर में अकेला पहचाना जा रहा था,वह आज भी पहचाना जाएगा,कल भी,मेरे लिए यही तस्वीर मेरा इम्तेहान है और आईना भी है ।
रोज़ खुद को देखता हूँ कि कहीं किसी भीड़,किसी दबाव,किसी लालच में साम्प्रदायिक,हिंसक,अन्यायी,क्रूर,असंवेदनशील न हो जाऊं । यह मेरे इम्तेहान है, जिसे जिस दिन पास करता हूँ खुश होता हूँ । कभी भी,किसी भी पल फेल हो सकता हूँ,इसलिए न गर्व है, बल्कि सतर्क रहता हूँ । हमेशा सोचता हूँ कि बस ईश्वर इतनी हिम्मत देना की यह धारण कर सकूँ । भीड़ के सामने मेरे घुटने न मुड़ जाएं,मेरी ज़बान लरज़ न जाए,इस डर में,खुद को रोज़ तैयार करता हूँ और हमेशा अधूरा पाता हूँ….