पाकिस्तान के मशहूर शायर फैज अहमद फैज के ‘हम देखेंगे’ नज्म पर हुए विवाद को लेकर उनकी बेटी सलीमा हाशमी ने प्रतिक्रिया दी है. इंडियन एक्सप्रेस से हुई बातचीत में उन्होंने कहा कि इस नज्म को हिंदू विरोधी कहना दुखद नहीं, बल्कि मजाकिया (फनी) है.
सलीमा हाशमी का कहना है कि उनके पिता के शब्द उन लोगों के लिए हमेशा मदद करेंगे जिन्हें अपनी बात कहने की जरुरत है. सलीमा हाशमी ने कहा कि इसको दूसरे तरीक़े से भी देखा जाना चाहिए कि शायद उनकी उर्दू शायरी और इसके रूपकों में दिलचस्पी पैदा हो जाए.
Extremely shameful that an institution like IIT can’t comprehend the intent and context of Faiz Ahmad Faiz’s revolutionary nazm ‘hum dekhenge’. Worst is that a panel will decide if it’s anti-Hindu or not. Remember it’s about Faiz. SHAME https://t.co/sia2F8Wh9T
— S lrfan Habib एस इरफान हबीब عرفان حبئب (@irfhabib) January 1, 2020
उन्होंने कहा कि फैज की ताकत को कम मत समझिए. रचनात्मक लोग ‘तानाशाहों के प्राकृतिक दुश्मन’ होते हैं. उन्हें खुशी है कि इस नज्म के जरिए उनके पिता कब्र के बाहर लोगों से बात कर रहे हैं.
Celebrated poets Faiz Ahmad Faiz, Habib Jalib and Allama Iqbal remain integral parts of popular protests against India's citizenship law https://t.co/hSRcLGN8Bf pic.twitter.com/EBs946Id2m
— Al Jazeera English (@AJEnglish) December 27, 2019
बता दें कि शायर फैज अहमद फैज (Faiz Ahmed Faiz) की एक कविता को लेकर आईआईटी कानपुर में विवाद गहराता चला गया. कैंपस में कुछ छात्रों ने नागरिकता कानून के खिलाफ फैज की कविता के नारे लगाए जिसकी जांच शुरू हो गई है. आईआईटी कानपुर ने एक समिति बना दी है. समिति तय करेगी कि उर्दू के महान शायर फैज अहमद फैज की कविता ‘लाजिम है कि हम भी देखेंगे’ हिंदू विरोधी तो नहीं है?