लखनऊ 31 अक्टूबर 2018। हाशिमपुरा पर आए फैसले पर रिहाई मंच ने कहा कि देश की एकता स्टेच्यू नहीं इंसाफ से बनेगी। फैसले ने लोकतंत्र को तो जरुर मजबूत किया पर लोकतांत्रिक पार्टियों के ऊपर लगा गहरा दाग भी उजागर किया है। मंच ने कहा कि कोर्ट ने हाशिमपुरा मामले को टारगेट किलिंग कहा है।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को अपने पिता और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान हुए जनसंहार की जिम्मेदारी लेते हुए सार्वजनिक करना चाहिए कि किन संघी तत्वों के दबाव में कांग्रेस सरकार ने बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों की हत्या करवाई। सपा सुप्रिमो अखिलेश और बसपा सुप्रिमो मायावती जवाब दें कि उनके कार्यकाल में साक्ष्यों को क्यों मिटा दिया गया। मंच ने कहा कि खुद को सेक्युलर कहने वाली पार्टियां मेरठ से लेकर हाशिमपुरा-मलियाना के गुनाहगारों के साथ नहीं खड़ी होती तो न बाबरी मस्जिद विध्वंस होता और ना ही मोदी जैसे व्यक्ति को हमें प्रधानमंत्री के रुप में देखना पड़ता।
पीएसी द्वारा हाशिमपुरा के मुस्लिम नौजवानों के जनसंहार पर उच्च न्यायालय दिल्ली के फैसले का रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने स्वागत किया है। फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा नजरअंदाज किए गए साक्ष्य को पर्याप्त मानकर सजा दिया जाना न्यायसंगत है। इतना ही साक्ष्य पर्याप्त था कि 107/16 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत जिन पीएसी जवानों ने युवकों को अपनी कस्टडी में रखा वो ही बताते कि यदि वे नौजवान गायब हैं तो कहां हैं। पीएसी की कस्टडी में रहते हुए अगर वे गायब हुए थे और नहीं मिले तो यही पर्याप्त साक्ष्य है कि पीएसी जवानों ने ही उनकी हत्या की। पीएसी ने ट्रक में मुस्लिम नौजवानों को भरा था और वही नौजवान गंग नहर और हिंडन नहर में गोलियों से घायल होने के बाद मरे पाए गए थे। इस निर्मम हत्या के साक्षी जो गोली खाकर भी जीवित रहे जुल्फिकार नासिर, मोहम्मद नईम, मोहम्मद उस्मान और मुजीबुर्रहमान द्वारा दिया गया साक्ष्य पीएसी को गुनहगार बनाने के लिए पर्याप्त थे। बाबूद्दीन का भी साक्ष्य पीएसी को अपराधी साबित करने के लिए काफी है। यह समस्त साक्षी ट्रक संख्या यूआरयू 1493 में ले जाए गए थे जो बच गए और सभी ने कहा कि उनके साथ ले जाए गए मुस्लिम नौजवानों को पीएसी जवानों ने ही गोलियों से मारकर उन्हें गंग नहर में फेंका था।
रिहाई मंच नेता गुफरान सिद्दीकी ने कहा कि हाशिमपुरा के मासूम नौजवानों को मारने के तीन दिन पहले तत्कालीन केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री पी चिदंबरम, यूपी के मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह, कांग्रेस की कृपा पात्र सांसद मोहसिना किदवई तथा प्रदेश के गृहमंत्री गोपीनाथ दीक्षित मेरठ पहुंचे थे और अधिकारियों से गोपनीय बैठक की थी। इस घटना में सेना की भी आपराधिक भूमिका थी पर आज तक हाशिमपुरा-मलियाना कांड के आयोगों की रपटों को दबाकर रखा गया है।
Delhi HC has accepted my plea to set aside the Tiz Hazari special court acquittal of 16 PAC jawans in the 1987 Hashimpura genocide case. I will tweet more when written formal orders are received. My advocate Ms. Ramni Taneja did a wonderful advocacy of my case in court
— Subramanian Swamy (@Swamy39) October 31, 2018
यह घटना तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाने के बाद देश में भड़के सांप्रदायिक तनावों के दौरान हुई थी। जाहिर है कि मुस्लिम नौजवानों की नृशंस हत्या के लिए जिम्मेदार कांग्रेस थी। आज तक उसने कभी इस घटना के लिए माफी तो दूर अफसोस तक जाहिर नहीं किया। मौजूदा हालात को लेकर सामाजिक-राजनीतिक संगठनों के साथियों के साथ शनिवार 3 नवंबर को गांधी भवन लखनऊ में बैठक होगी।
Hashimpura case: Delhi HC sentences 16 PAC men to life imprisonment for murder of 42 Muslimshttps://t.co/n513G18XZm This is Lesson for those errant officers who are murdering people on the orders of their POLITICAL BOSSES
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) October 31, 2018