आस्ट्रेलिया के सिडनी नगर के एक रेस्टोरेंट में ऑस्ट्रेलिया के सबसे अधिक आबादी वाले शहर सिडनी में एक कैफ़े में बंधक बनाए जाने की घटना में बंधक बनाने वाले व्यक्ति मारा गया और स्थानीय मीडिया के अनुसार, हमलावर की शिनाख़्त ईरानी मूल के हारून मोनिस के रूप में हुई है, जो 18 वर्षों से ऑस्ट्रेलिया में शरर्णार्थी के रूप में रह रहा था।
ईरानी मीडिया के अनुसार हारून मूनिस नामक यह ईरानी वर्षों पहले ईरान में एक ट्रवेल एजेन्सी चलाता था किंतु 18 वर्ष पूर्व उस पर धोखाधड़ी और ठगी का आरोप लगा और वह ईरान की न्यायपालिका से बचने के लिए मलेशिया और फिर वहां से आस्ट्रेलिया भाग गया।
आस्ट्रेलिया में राजनीतिक शरण लेने के लिए उसने स्वंय को एक उदारवादी धर्मगुरु के रूप में पेश किया और मोहम्मद हसन मन्तेक़ी से हारून मूनिस बन गया।
ईरान की इस्लामी सरकार और पश्चिम में चल रहे तनाव के कारण पश्चिमी देश इस प्रकार के लोगों को बड़ी सरलता से राजनीतिक शरण दे देते हैं।
आस्ट्रेलिया में राजनीतिक शरण मिलने के बाद हारून मूनिस ने झाड़-फूंक शुरू कर दी जिसके बाद बहुत सी महिलाओं ने उस पर झाड़- फूंक के बहाने यौन शोषण का आरोप लगाया और फिर उस पर अपनी ही पत्नी की हत्या का आरोप लगा और जेल हो गयी।
49 वर्षीय मोनिस पर कई हिंसक अपराधों के लिए ऑस्ट्रेलिया में मुकदमा चल रहा है किंतु फिलहाल उसे ज़मानत पर रिहा किया गया था और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री के अनुसार आस्ट्रेलिया की पुलिस उसे बहुत अच्छी तरह से पहचानती है।
मोनिस पर यह भी आरोप लगा था कि उसने विदेशों में सेवा के दौरान मारे गए ऑस्ट्रेलियाई सैनिकों के मां बाप को गालियों से भरे पत्र भेजे थे। इन सब के बावजूद वह आस्ट्रेलियाई सैनिकों के इराक युद्ध में भाग लेने का विरोध करता था जिसकी वजह से उसने स्थानीय मीडिया की वाहवाही भी लूटी।
इतना सब होने के बावजूद आस्ट्रेलियाई पुलिस ने मोनिस हारून के प्रत्यपर्ण की बार बार की जाने वाली ईरानी पुलिस की मांग को अस्वीकार कर दिया था।
ईरानी पुलिस ने इंटरपोल के ज़रीए कई बार ईरान में ठगी और धोखे के आरोपी मोनिस हारून को ईरानी पुलिस के हवाले करने की मांग की किंतु आस्ट्रेलियाई पुलिस ने “राजनीतिक मामला” होने की बात कह कर उसे ईरानी पुलिस के हवाले करने से इन्कार कर दिया।
मोनिस हारून ने कुछ समय पहले शीआ धर्म छोड़ने की भी घोषणा की थी और कहा था कि पहले मैं राफेज़ी था किंतु अब मुसलमान हूं। इसके लिए उसने आईएसआईएल के सरग़ना अबूबक्र अलबगदादी की बैअत का भी एलान किया था।
पहली दिसम्बर को मोनिस ने ट्वीटर पर एक संदेश में ईरान और सीरिया के राष्ट्रपति बशार असद के समर्थकों को आतंकवादी क़रार दिया था।
विचार योग्य बात यह है कि इतने सारे आरोपों और एक महीने पहले आईएसआईएस का खुल कर समर्थन करने के बावजूद मोनिस हारून आज़ादी के साथ आस्ट्रेलिया में घूम फिर रहा था और अन्ततः इस प्रकार की कार्यवाही भी करने में सफल हुआ।
ईरान के पुलिस प्रमुख का बयानः
इस्लामी गणतंत्र ईरान के पुलिस प्रमुख ने कहा है कि हमने आस्ट्रेलिया से कहा है कि हम इस संदर्भ में सहयोग के लिए तैयार हैं।
जनरल अहमद मुक़द्दम ने कहा कि हमने इस अपराधी के प्रत्ययपर्ण की बहुत कोशिश की किंतु आस्ट्रेलिया की पुलिस ने उसे हमारे हवाले करने से इन्कार किया जो निंदनीय असहयोग है।
उन्होंने कहा कि एसा लग रहा है कि जैसे यह एक ड्रामा हो और कुछ लोग इस घटना से विशेष उद्देश्यों की पूर्ति चाहते हैं हम यह नहीं कह रहे हैं कि इस घटना के पीछे आस्ट्रेलियाई सरकार का हाथ हो सकता है किंतु बहरहाल पश्चिम इस घटना की आड़ में, स्वंय पर लगने वाले आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध में लापरवाही के आरोप को धोना चाहता है और ईरान का नाम अकारण उछालना चाहता है।
ईरान ने कड़े शब्दों में निंदा की है।
ईरान के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मरज़िया अफ़ख़म ने एक बयान में कहा है कि अमानवीय शैली अपनाना और ईश्वरीय धर्म इस्लाम के नाम पर आतंक एवं दहशत फैलाना किसी भी परिस्थिति में न्यायोचित नहीं है।
उन्होंने कहा कि ऑस्ट्रेलियाई पुलिस हमलावर की मानसिक स्थिति से पूर्ण रूप से अवगत थी कि जो लगभग दो दशक पहले वहां जाकर बस गया था।
ईरान का नाम क्यों उछाला जा रहा है?
ईरानी संचार माध्यमों विशेषकर समाचार पत्रों में इस बात पर ध्यान दिया गया कि पश्चिमी मीडिया सिडनी की पूरी घटना में, इस घटना के ज़िम्मेदार के ईरानी होने का बार बार उल्लेख कर रहा है और उसे बहुत उछाल रहा है जिससे इस पूरी घटना पर शंका होती है।
समाचार पत्रों ने लिखा है कि पश्चिमी देशों में आए दिन आईएसआईएल के समर्थक पकड़े जाते हैं और इसी प्रकार आतंकवादी भी किंतु कभी भी उदाहरण स्वरूप उनके अमरीकी, फ्रांसीसी या ब्रिटिश होने की बात नहीं उछाली जाती बल्कि उनके मुसलमान होने पर बार बार बल दिया जाता है। किंतु मोनिस हारून के बारे में उनकी शैली अलग है जबकि यह ईरान का सरकार विरोधी और एक भगोड़ा अपराधी था। इसी प्रकार हालांकि यह स्पष्ट है कि वह राजनीतिक शरण लेने के लिए धर्मगुरु बन गया था किंतु फिर भी धर्मगुरुओं की विशेष लिबास में उसकी फोटो, पश्चिमी संचार माध्यमों में बार बार दिखायी जा रही है।
बहरहाल इस घटना के पीछे क्या कुछ छुपा है इसका पता कुछ दिनों बाद ही लगेगा मगर पर्दे के पीछे छुपी सच्चाई, अभी से झलकने लगी है।
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