लखनऊ सोसाइटी की पहल पर उर्दूको लोकप्रिय बनानेकेलिए एक कार्यक्रम केतहत आज सेकार्यशाला प्रारंभ हुई.लखनऊ में परवान चढ़ी उर्दू को विश्व में तहजीब की ज़बान या ज़बान-ए-लखनऊ कहा जाता है. लखनऊ सोसाइटी और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज संयुक्त रूप से इसके प्रचार-प्रसार के लिए आगे आये हैं. टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज ने अपने सामाजिक
दायित्व के निर्वहन के लिए देश की साक्षरता समस्या को समाप्त करने के लिए एक सॉफ्टवेयर विकसित किया है जो जिज्ञासुओं को निश्शुल्क उपलब्ध है. लखनऊ सोसाइटी ने हिंदुस्तानी बोलने वालों को उर्दू लिखने-पढ़ने के लिए इस सॉफ्टवेयर को ”स्वयं शिक्षक” के रूप में उपयोग सिखाने का कार्यक्रम शुरू किया है. सॉफ्टवेयर और कक्षाओं के माध्यम
से इस भाषा को सीखने वालों को आमंत्रित किया जाता है और इसके लिए कोई शुल्क नहीं लिया जायेगा.
प्रसिद्ध कवि-शायर निर्मल दर्शन जो लखनऊ की गंगा-जमुनी संस्कृति के सच्चे प्रतिनिधि हैं, वो उर्दू भाषा का प्रयोग सिखाएंगे, और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज के अनस खान सॉफ्टवेयर के द्वारा इसको प्रदर्शित करेंगे. आतिफ़ हनीफ़ ने आज पहले दिन इस भाषा के प्राम्भिक पहलुओं और शब्दावली के सम्बन्ध में जानकारी दी. अब तक 15 विद्यार्थी पंजीकृत
हुए हैं जिन्होंने लखनऊ सोसाइटी के कार्यालय में आज एक महीने तक चलने वाला पाठ्यक्रम की शुरुआत की. लखनऊ सोसाइटी के संस्थापक शमीम ए आरज़ू ने बताया ये कार्यक्रम ”लखनऊ लिटरेरी फेस्टिवल” का एक भाग है और 21 वीं सदी में प्रवेश करने वाले साहित्य के विभिन्न पहलुओं को संरक्षित और संवर्धित करने के संकल्प का ये एक चरण है.
”वो करे बात तो हर लफ़्ज़ से ख़ुश्बू आये
ऐसी बोली वो ही बोले जिसे उर्दू आये”
आतिफ़ हनीफ़