मुम्बई :पिछले दो दिनों से मैं चुप हूं। परसों के बाद से समझ में ही नहीं आ रहा है कि क्या कहना है? सबसे पहले मुख्यमंत्री से पूछता हूं ‘हाऊज द जोश?’ शिवसेनापक्षप्रमुख उद्धव ठाकरे के ऐसा पूछते ही मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने फौरन खुशी जाहिर करते हुए हाथ उठाकर ‘हाई सर’ की मुद्रा दिखाई।
लोकमत महाराष्ट्रीयन ऑफ दि ईयर पुरस्कार समारोह में पॉवर आयकॉन पुरस्कार से कल शिवसेनापक्षप्रमुख उद्धव ठाकरे को सम्मानित किया गया। वरली के एनएससीआई डोम में हुए कार्यक्रम में वरिष्ठ प्रवचनकार आप्पासाहेब धर्माधिकारी के हाथों उन्हें इस पुरस्कार से नवाजा गया।
इस दौरान उन्होंने शिवसेना-भाजपा युति के संदर्भ में कटाक्ष करनेवालों को चेतावनी देते हुए कहा कि शिवसेना-भाजपा युति को लेकर सभी ओर चर्चा शुरू है। कटाक्ष की बौछार हो रही है। उन्होंने कहा कि युति के संदर्भ में जिन्हें जितना कटाक्ष करना है, उतना करने दो। मैदान में उतरने के बाद उन्हें करारा जवाब दिया जाएगा। पुलवामा में हुए आतंकी हमले की निंदा करते हुए उन्होंने कहा कि आज पूरे देश में आक्रोश छाया हुआ है।
पूरे देश की नजर इस पर लगी हुई है कि हिंदुस्थान कब पाकिस्तान को नेस्तनाबूद करेगा। उन्हें ऐसी चोट देनी चाहिए कि वे दोबारा उठने की हिम्मत न कर सकें। उद्धव ठाकरे के इस हुंकार से पूरा सभागृह तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र पर गर्व व्यक्त करते हुए कहा कि महाराष्ट्र देश को दिशा दिखानेवाला राज्य है। इस दौरान उद्धव ठाकरे ने आप्पासाहेब धर्माधिकारी की भूरि-भूरि प्रशंसा की। पॉवर आयकॉन पुरस्कार से नवाजे जाने पर उन्होंने लोकमत परिवार को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि यह पुरस्कार मैं अपने तमाम शिवसैनिकों की ओर से स्वीकार करता हूं। शिवसैनिकों के कारण ही मुझे यह पुरस्कार मिला और इसे मैं उन्हें ही अर्पित करता हूं।
आप्पा साहेब धर्माधिकारी से पुरस्कार मिलने पर उन्होंने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि उनके हाथों से मिला यह पुरस्कार मेरे लिए पुरस्कार नहीं बल्कि आर्शीवाद है। हमारे कार्यों को उनका यह आर्शीवाद इसी तरह मिलता रहे ऐसा भी उद्धव ठाकरे ने कहा। इस दौरान उद्धव ठाकरे ने कहा कि अखबार चलाना साधारण बात नहीं है। हम भी अखबार चलाते हैं। विचारधारा लेकर आगे बढ़ना पड़ता है। अखबार चलाना व्यवसाय नहीं बल्कि यह हमारे लोकतंत्र का एक स्तंभ है। इसके माध्यम से लोगों का मार्गदर्शन करना एक बड़ा उत्तरदायित्व है जो कि हमें निभाना पड़ता है।
( हिंदी सामना )