प्रदीप कपूर
मशहूर संगीकार नौशाद अली, जो हमारे शहर लखनऊ के थे , की आज बरसी है। तो हमने सोचा कि उनको याद किया जाय।एक जमाना था कि हमको नौशाद साहब से मिलने,जानने और सुनने का मौका मिला।
ये वो जमाना था जब हम अपने चचा जानेमाने शायर , गीतकार व उर्दू ब्लिट्ज के एडिटर हसन कमाल के बांद्रा मुंबई के घर में ठहरते थे।
नौशाद अली साहब रोज सुबह हसन कमाल साहब के घर मॉर्निंग वॉक करके आते थे और चाय पर गपशप करके एक घंटा बैठ कर चले जाते थे। हमको भी मौका मिलता था नौशाद साब के साथ उनके जमाने के लखनऊ और लोगो के बारे में जानने का मौका मिलता था।
नौशाद साहब बताते थे कि तरह उनके मित्र और पत्रकार अमीन सलोंवी अपनी साइकिल पर शहर घूमते थे समाचार इकठ्ठा करके अपनी न्यूज सर्विस के जरिए अखबारों तक पहुंचे थे। उस जमाने में वे उर्दू के बड़े पत्रकार थे।
इसी तरह नौशाद साहब अपने मित्र इन्हौनवी साब के बारे में बताते थे जो खुद एक बड़े पब्लिशर थे और किताबें छापते थे।बहुत कम लोगो को पता होगा कि नौशाद साहब खुद बहुत बढ़िया खाना पकाते थे। हमको उनका पकाया हुए खाना खाने का सौभाग्य मिला।
हुआ यह कि आज से 35 साल पहले रमज़ान के मौके पर अपने चचा हसन कमाल के घर पर रूके हुए थे। हसन कमाल साब ने कहा कि वे रोज़ा रखना का मन बना रहे पर अकेले ही रखना होगा तब हमने कहा कि हम उनका साथ देंगे पर सुबह सेहरी के वक़्त उठाना पड़ेगा।
हमने पांच रोज़े रखे और शाम को इफ्तार उर्दू ब्लिट्ज के दफ्तर में होता था जिसमें इंग्लिश और हिंदी ब्लिट्ज का पूरा स्टाफ आता था। एडिटर करांजियात भी ये जानकर खुश हुए की हम रोज़े से थे।
नौशाद साहब को जब पता चला तो वे खुद एक शाम मटन के कोफ्ते बनाकर खुद लेकर आए और साथ खाना खाया।नौशाद साहब लखनऊ आते तो हम सब काम छोड़ कर दिन रात उनके साथ रहते थे।
ये 1992 की बात है हम नौशाद साहब से मिलने मीराबाई मार्ग पर स्टेट गेस्ट हाउस मिलने गए तो वे बोले कपूर साब जब कोई रिश्तेदार या मित्र बाहर से आता होगा तो आप लखनऊ घूमने जाते होंगे। चलिए आज हम आपको लखनऊ अपनी नजर से घुमाते है जो हमने काफी साल पहले छोड़ा था।
हम और नौशाद साहब एक कार में बैठकर जब रवाना हुए तो हर इमारत को अपनी नजर से बताने लगे। मॉडल हाउस के नुक्कड़ पर गाड़ी रोककर नौशाद साहब ने बताया कि वहां एक बुजुर्ग जो टायर ट्यूब पंक्चर बनाते थे और साइकिल किराए पर देते थे कि दुकान थी। नौशाद साब ने बताया कि वो उनकी नाटक मंडली को।पैसे देते थे कि बच्चे लोग नाटक कर सकें।
नौशाद साहब अमीनाबाद में उस दुकान पर लगाए जहां हारमोनियम और साज की बिक्री होती थी। वोह दुकान आज भी है।
उसके बाद हम बड़े इमामबाड़े गए तो नौशाद साहब बाहर ही जो नजारा देखा तो चौंक गए। उनको कुछ खाली खाली से दिखाई पड़ा। यहां ये बताना जरूरी है कि इमामबाड़े की बाहर की तरफ गेट के दोनों ओर झरोखे थे जहां कइ पुस्त से परिवार के परिवार रहते थे और बोरी के ताट के पर्दे पड़े रहते थे। लेकिन 1991 सरकार ने सुंदरीकरण के लिए उनका हटा दिया था।
नौशाद साहब शायर भी तो उन्होने तुरंत कहा कहां गई वो बस्ती कहां गए वो लोग।
इमामबाड़ा घूमने के बाद हम लोग गोल दरवाजा पहुंचे और अखबारी गेट की तरफ जाने के लिए हैं दाखिल हुए।
नौशाद साब ने बताया कि सड़क के दोनों तरफ एक जमाने में कोठे हुए करते थे। काफी दूर जाकर एक चबूतरे पर नौशाद साहब रुक गए और बताया की ऊपर एक बाई का कोठा था जो पक्के गाने के लिए मशहूर थी। नौशाद साहब ने बताया कि उनकी उम्र कम थी तो ऊपर जा नहीं सकते थे और उनको संगीत और गाने सुनने का शौक था जो घर पर बुरा माना जाता था। तो नौशाद साहब घंटो उसी चबूतरे पर बैठ कर बाई का गाना सुनते थे।
जब हम और नौशाद साहब वहां थे लोगो ने उनको पहचानने लगे और थोड़ी देर में 100 से ज्यादा लोग आगाए की नौशाद साहब उनके बीच में हैं। सब लोग नौशाद साब को अचानक अपने बीच पाकर खुश हुए तब हमने चाय पी।फिर जब आगे गए तो नौशाद साहब असगर अली मोहम्मद अली की तरीकी कोठी के सामने रुक कर उसके बारे में विस्तार से बताने लगे।
जब आगे बड़े तो मशहूर टुंडे की दुकान पहुंचे वहां भी लोगो ने नौशाद साहब को घेर लिया। जो कबाब बना रहा था वो भी नौशाद साहब को देख कर घबरा गया। उसने नौशाद साब के लिए खास कबाब और परांठा बनाया।उस मोहब्बत की बात ही कुछ और थी।
अखबरी गेट के पास की तमाम इमारतों के बारे में नौशाद साहब ने तफसील से बताया। और इस तरह उनके साथ घूम कर स्टेट गेस्ट हाउस वापस पहुंच गए। वो नौशाद साहब के साथ लखनऊ का सफर आज भी उतना याद है जैसे कल की बात हो।
Watch Also Pradeep Kapoor on Lucknow Coffee House:
https://www.youtube.com/watch?v=WnSswGuGSlI
नौशाद साहब कें साथ बैठकी होती थी वो बताते थे कि जिन फुटपाथ पर रात गुजारी उसके सामने के पिक्चर हॉल में उनकी फिल्म रिलीज हुई तो उस खुशी का कोई मुकाबला ही नही था। वे बताते थे कि किस तरह मुगले आजम के लिए बड़े गुलाम अली खां साहब को कैसे मनाया।
उस जमाने में जब हम नौशाद साहब से मिलते थे एक उदासी सी रहती थी उनके चेहरे पर । वे बड़े चाव से बताते थे दुनिया के बड़े मुल्कों व शहरों में उनका खूब सम्मान हुए लॉस एंजेलिस के मेयर ने गोल्डन चाबी उपहार और सम्मान के रूप में भैंट में दी। पर उनके अपने लखनऊ में सम्मान नहीं हुआ।
वे खूब तब हुए जब गवर्नर मोती लाल वोरा ने उनका सम्मान आयोजित किया। प्रोग्राम से पहले नौशाद साहब ने हमसे कहा कि लखनऊ के मेयर डॉक्टर अखिलेश दास को भी मौजूद रहना चाहिए। हमने नौशाद साहब का संदेशा अखिलेश दास को भिजवाया। वे भी उस यादगार सम्मान समारोह की हिस्सा बने। सम्मान समारोह के बाद नौशाद साहब ने कहा कि अपने लखनऊ में अपने दोस्तो अजीजो के बीच को सम्मान हुआ उसकी कोई बराबरी नहीं कर सकता।
एक बार हम नौशाद साहब को छोड़ने अमौसी हवाई अड्डे पर गए थे और हवाई जहाज़ के जाने में काफी समय था तो हम लोग इंतजार कर रहे थे। तभी अचानक एक नौजवान आया उसके साथ कुछ लोग थे। उस नवजवान ने आते ही नौशाद साहब के पैर छुए और हाथ जोड़ कर परिचय दिया और कहा मेरा नाम उदित नारायन है और कुछ गाने का प्रयास कर रहा हूं शायद मेरा एक गाना पापा कहते है बड़ा नाम करेगा शायद आपने ने सुना हो। तब नौशाद साहब उनको आशीर्वाद दिया और कहा पूरा हिंदुस्तान उदित नारायन का गाना गा रहा है।
नौशाद साहब हमेशा कहते थे कि पश्चिम के संगीत में शरीर हिलता है और हिन्दुस्तानी संगीत आत्मा को छूता है।