सय्यद हुसैन अफसर
एक अधभुत शहर का नाम है.एक बार लखनऊ की सैर करने के बाद हर पर्यटक की दूसरी बार यात्रा की ख्वाहिश उसके दिल मे मौजे मारती है.शहर की ऐतिहासिक इमारतें,स्थानीय लोगो की बोल चाल ,उनमे मोहब्बत की झलक और नगर की मेहमान नवाज़ी ने इस शहर को दुनिया के इन गिने चुने शहरों की लाइन मे खड़ा कर दिया जो अपनी संस्कृति, चमक,दमक और रहन सहन के लिये मश्हूर हैं.
अवध की हुकूमत से पहले शेखों की सत्ता थी और शेखों की सख्त दिली और न इंसाफी के कारण दिल्ली सरकार ने अवध मे ऐसे लोगों को हुकूमत बनवाने मे मद्दद की जो अपनी प्रजा से हक़ व इन्साफ कर सकें.प्रसिद्द इतिहासकार आग़ा मेहदी अपनी किताब तारीखे लखनऊ मे इस खूबसूरत शहर का क्या नज़ारा पेश करते हैं : वह लिखते है बरात मे दूल्हा ,चमन मे फूल,फूल मे खुशबू ,दिये मे लौ,शरीर मे आत्मा,आँख मे नूर,दिल मे सुरूर(ख़ुशी) सीपी मे मोती,नाव मे लंगर की जो शान होती है वही हैसियत शहर लखनऊ की इस सूबे मे है.नवाबी दौर और शाही मे इस शहर मे क्या शान थी .यहाँ की गलियों मे कितनी रौनक और बाज़ारों मे कितनी चहल पहल थी .
शहरनामा ने गुज़रे हुवे लखनऊ और आज के लखनऊ के कुछ मोहल्लों को आपके सामने पेश करने का क्रम शुरू किया है.
इस क्रम के पहले भाग मे हम शहर की एक महत्वपूर्ण सड़क विक्टोरिया स्ट्रीट और नक्खास के इर्द गिर्द का हाल पेश केर रहे हैं..
बर्तानिया की महारानी विक्टोरिया के नाम पर इस सड़क को अंगरेज़ों ने उनकी याद मे स्थापित किया.चौक तरकारी मंडी से पहले शुरू होने वाली सड़क का अंत तालकटोरा की कर्बला पर समाप्त होता है..लखनऊ वालों ने इसी सड़क के बीच के हिस्से को विक्टोरिया गंज के बजाये टूरिया गंज भी कहना शुरू किया,अनगिनत क़िस्से और कहानियों,महलों और कोठियों व करिश्माई लोगों से घिरी इस सड़क को किसी ज़माने मे इमामिया बाजार कहा जाता था आज यह सड़क तुलसी दस मार्ग के नाम से जानी जाती है.
पुरानी इमारतों मे से अब कुछ बाक़ी हैं बाक़ी काम्प्लेक्स और बाज़ारों ने अपनी जगह बना ली.इतवार का मश्हूर बाजार नक्खास का बाज़ार अभी तक लगता है.यह ज़रूर है कि पहले यह बाजार चिड़िया बाजार और बज़ाज़े तक सीमित था अब इसकी लम्बाई बढ़ चुकी है अथार्त नेहरू क्रॉस और मेडिकल कॉलेज तक”: फुट पैरी “:की दुकानें लगने लगी हैं.
नक्खास :
नक्खास पहले अकबरी दरवाज़े के गेट के सामने चावल वाली गली से शुरू होता था .मगर विक्टोरिया स्ट्रीट के बनने के बाद अंग्रेजी सरकार के दौर मे यह बाजार सड़क पर आगया और इसकी लम्बाई बढ़ती चली गयी .
नक्खास उस बाजार को कहा जाता है जिस हेर तरह का बाजार माल बेचा और खरीदा जाये. चिड़िया बाजार का भी शाही दौर से वुजूद है
शाही दौर मे भी नक्खास मे दूर दराज़ से लोग आकर अपना माल बेचते और खरीदते थे .बज़ाज़ा कपड़े के करोबरियां का हिस्सा था और इसी के बीच मे चिड़िया बाजार जिस मे आज भी तोते,मुर्ग़,कव्वे,खरगोश,बकरियां और दूसरे जानवर बिकते हैं.पहले इस बाजार को मंगल का बाजार भी कहा जाता था क्योंके यह मंगल को भी लगता था.अंग्रेजी दौर मे १९१० तक यह मंगल बाजार रहा.यहाँ तक काकोरी मलिहाबाद से लोग इस बाजार मे आते और कारोबार करते .क्रांतिकरी शायर जोश मलीहाबादी ने विक्टोरिया स्ट्रीट को लम्बी और अहम सड़क की वजह से “: लखनऊ की मांग”कहा है.
इस इलाक़े मे इकराम उल्लाह खान का इमामबाड़ा,नाज़िम साहब का इमामबाड़ा,नासिख़ की क़ब्र,हकीम साहब आलम का मकान ,अफज़ल महल और बहुत सी पुरानी और नई कोठियां थीं जिन मे से बहुत सी बर्बाद हो चुकी हैं.एक सड़क चौपटियों को निकलती है तो उसी के आगे गामा का पल,मिर्ज़ा मंडी और सोंधी टोला के रास्ता भी है.इसी इलाक़े मे फिरंगी महल ,पारचे वाली गली,शाह छड़ा का मज़ार ,गुदड़ी बाजार,घोड़े वाली ,आगे बढ़ कर पल ग़ुलाम हुसैन ,और नक्खास से ही दाहिने रास्ते नादाँन महल रोड,ऐशबाग़ और निदान महल के मक़बरे का इलाक़ा है.थोक की सब से बड़ी बाज़ार याहिया गंज जिस को लोगों ने बोलते बोलते अहिया गंज करदिया आज भी मौजूद है.
इसी इलाक़े मे कंघी वाली गली,बिल्लौच पूरा,मिर्ज़ा दबीर का मज़ार और अकबरी दरवाज़े से आगे चल कर अशर्फाबाद का क़दीमी मोहल्ला है.इसी के समानांतर चौक भी है .
विक्टोरिया गंज मे ही खाला की बाजार है ,किसी ज़माने मे यहाँ खालें बिक करती थीं .इस लिये खाला की बाजार नाम हुवा.
खैरात खाना
विक्टोरिया स्ट्रीट पर ही हैदर गंज से पहले शाही खैरात खाना है,जिस की पुरानी और टूटी हुवुई ईमारत आज भी मौजूद है मगर भवन का हाल खस्ता है..
बादशाह नसीर उद्दीन हैदर ने खैरात खाने की स्थापना अपने दौर मे ग़रीब लोगों की सहायता के लिये की थी.यहाँ,लूले ,लंगड़े ,अपाहज और लावारिस औरत व मर्दो को दोनों वक़्त का खाना दिया जाता.लावारिस लोगों के रहने के लिये कमरे बने हुवे थे .
विक्टोरिया स्ट्रीट पर ही आगे चल कर कर्बला मुंशी फज़ल हुसैन ,कर्बला सईद उद दौला,कर्बला पुत्तन साहिबा,आदि हैं. इस सड़क पर बादशाह नसीर उद्दीन हैदर की रक़म से एक अंग्रेजी अस्पताल १८६४ मे स्थापित हुवा.इसी की शाखा हज़रतगंज दारुलशफा स्थान्तरित हुई .
अब नक्खास एक बड़ी बाजार बन चूका है.जिस मे इतवार के अलावा भी नया व पुराना सामान बिकता है.दूर दराज़ से कारोबारी यहाँ आज भी आते और फायदा उठाते हैं.