उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2017 तो अभी दूर है लेकिन राजनीतिक दलों की गतिविधियां अवश्य बढ़ने लगी है। जातीय समीकरण अपने पक्ष में सही करने के लिए खासी जद्दोजहद चल रही है।
भाजपा सदस्यता अभियान चलाकर समाज के सभी वर्गों में पहुंच रही है तो बसपा संगठन में परिवर्तन कर इसे और चुस्त-दुरुस्त करने में लगी है। कांग्रेस अपने से दूर जा चुके दलित वर्ग को लुभाने में लगी है। समाजवादी पार्टी भी इस मामले में गतिविधि दिखा रही है।
प्रदेश में दलित वोट करीब 21 प्रतिशत माने जाते हैं। इसका एक बड़ा हिस्सा बसपा के खाते में जाता है। आने वाले विधानसभा चुनावों में वोट को लेकर खासी जद्दोजहद शुरुआत अभी से हो चुकी है। भाजपा अब दलित वोटों को अपने पाले करने के लिए खासी सक्रिय है। लोकसभा चुनाव के समय भाजपा दलित नेता मौजूद राज को अपने पाले में ले आई। लंबे समय से यूपी में दलितों के बीच अपनी पार्टी बनाकर अस्तित्व राज राजनीति कर रहे थे। वह भी प्रशासनिक सेवा से आए थे। लेकिन उन्हें स्थान मिला भाजपा में आकर। अब वह नई दिल्ली भाजपा के नेता हैं।
लोकसभा चुनाव में चली यह अभियान अब दलित वर्ग के पूर्व नौकरशाह बृजलाल के आने के साथ और परवान चढ़ेगय। सूत्रों की माने तो कई दलों के दलित और पिछड़े वर्ग के नेता भाजपा नेताओं के संपर्क में हैं और देर-सवेर भाजपा का दामन थाम सकते हैं। इनमें सबसे अधिक चर्चा जुगल किशोर की है। पिछले विधानसभा चुनाव तक जुगल किशोर खासे शक्तिशाली नेता थे। पिछले दिनों बसपा सुप्रीमो मायावती ने जब जुगल किशोर को किनारे लगा दिया तो अब उनके सामने भाजपा में जाने का विकल्प ही सबसे अच्छा लग रहा है। राज्यसभा सदस्य होने की वजह से ही बसपा ने उनका बहिष्कार नहीं किया।
इसके अलावा रामचंद्र मंत्री के भी भाजपा में जाने की चर्चा है। पिछले दिनों बसपा ने दारा सिंह चौहान समेत कई नेताओं को निकाल दिया है। सूत्र बताते हैं कि बसपा में अभी कई और दलित नेता अंदर ही कसमसा रहे हैं, और वे बाहर आने के लिए अनुकूल समय की प्रतीक्षा कर रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि भाजपा की इसी रणनीति के तहत ही पार्टी के नेता समाजवादी पार्टी के 60 से अधिक विधायकों के संपर्क में होने का दावा कर रहे हैं।