लखनऊ। नरही स्थित उर्दू मीडिया सेन्टर में बुद्धिजीवियों, पत्रकारों और विभिन्न क्षेत्रों से सम्बन्ध रखने वाले शिया मुसलमानों ने एक बैठक कर मुसलमानों के तमाम फिरकों में कैसे इत्तेहाद पैदा कर उन्हें तालीम की तरफ मोड़ा जाए। बैठक में मुसलमानों से जुड़े तमाम अहम मुद्दों पर गंभीर मंथन किया गया।
बैठक का एक मकसद यह भी था कि वक्फ की जायदाद की हिफाजत के साथ-साथ हुकूमत और अवाम के बीच कोआर्डिनेशन पैदा करने पर भी जोर दिया गया। इस बैठक में रिटायर्ड आई.ए.एस. अली ताहिर रिज़वी, अली अज़हर रिज़वी, अली मज़हर रिज़वी, पूर्व न्यायाधीश जस्टिस हैदर अब्बास रज़ा, डॉ. अली हम्माद रिज़वी, प्रोफ़ेसर शारिब रूदौलवी, प्रोफ़ेसर फज़़ले इमाम, कर्नल जर्रार, पूर्व निदेशक आर.डी.एस.ओ. रज़ा, रिटायर्ड सुपरिटेन्डिंग इंजीयनर मज़हर अब्बास, नेशनल हाईवे से रिटायर्ड इंजीनियर काज़मी, पूर्व डिप्टी डायरेक्टर, गर्वटमेन्ट प्रेस, जऱग़ाम हैदर के अलावा तमाम रिटायर्ड इंजीनियर्स, ब्यूरोक्रेट, जुडियशरी से जुड़े लोग व पत्रकार शामिल हुये। इस प्रोग्राम के कन्वेनर वक़ार रिज़वी की इस कोशिश को सराहते हुये आये सभी मेहमानों ने कहा कि सम्भवत: ऐसा पहली बार हुआ है कि जब किसी एक फिऱक़े के इतने बुद्धजीवी एक साथ एक छत के नीचे जमा हुये हों।
लगभग 3 घंटे तक चले इस संवाद में सब लोगों नें एकमत होकर कहा कि सबसे पहले हम सब को एक ”माईनारिटी कोआर्डिनेशन ब्यूरो की स्थापना करनी चाहिये जिसके तहत हम सभी फिऱक़े के बुद्धजीवियों के साथ बैठक कर संवाद स्थापित कर सकें। इसी के तहत आज ‘माईनारिटी कोआर्डिनेशन ब्यूरोÓ की स्थापना की गयी। यह ब्यूरो जल्दी ही अपनी वेबसाईट बनायेगा जिस पर शिक्षा, रोजग़ार, माईनरटीज़ स्कालरशिप स्कीम वग़ैरह की जानकारी हासिल की जा सकती है। बैठक में मौजूद सभी लोगों ने ”जान है तो जहान हैके मद्देनजर इस बात पर भरपूर ज़ोर दिया कि मिल्लते इस्लामियां की बक़ा और मिल्लत के तहफ्फुज़ के लिए इत्तेहादे बैनुल मुसलेमीन हमेशा से एक अहम ज़रूरत रही हैं और आज भी है और इस बात में दो राय नहीं हो सकती
। अगर दुनिया और खुसूसन अपने मुल्क हिन्दुस्तान की मौजूदा सूरत-ए-हाल पर सरसरी नजऱ डाली जाये तो साफ नजऱ आता है कि कई लिहाज़ से तमाम-तर धार्मिक अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानान-ए-हिन्द के लिए आज के हालात अत्यंत चिंता का विषय है। इस गंभीर पृष्ठïभूमि में आज हमको इस तरह की अमली जामा अपनाने की सख्त ज़रूरत है, जो शहादत-ए-रसूल (स.अ.व.) के फौरन बाद पैदा हुये बदतरीन हालात में हजऱत अली (अ.स.) ने, जिनको इस दुनिया की सेक्युलर तारीख मुसलमानों के चौथे खलीफाये राशिद के नाम से ज़्यादा जानती है। मिल्लते इस्लामियां को नागुफ्ता बह खलफेशार और तेज़ी से फैल जाने वाले इन्तेशार से बचाने के लिए अपनाई थी। इस अम्र की अज़ीम अफ़ादियत और वक़्ती अहमियत से भी इन्कार नामुमकिन है और ये खास तौर पर इसलिए कि कुछ एक फितना परवर समाजी तबक़ात जिनकी तादाद तो कम है और जिनमें बज़ाहिर मिल्लते इस्लामिया का एक छोटा जुज़ भी शामिल है।
ऐसे में जो दूसरे मुमालिक से हासिल की गयी दौलत का ग़लत इस्तेमाल करके शरारत अंगेज़ हरकते करने और फसाद बरपा करने के दर पै रहते है और अपने घटिया मक़सद की कामयाबी के लिए मुख्तलिफ अक़साम की ग़लतफहमियां पैदा करते और उनको हवा देते है। इस सूरते हाल के मद्दे नजऱ हममें से हर किसी पर दूसरे फिरकों और तबक़ात की दिलाज़ारी करने से सख्त परहेज़ लाजि़म है। लिहाज़ा हमारी जानिब से ये पुरज़ोर अपील की जाती है कि किसी भी मौके पर, ख्वाह प्राइवेट हो या पब्लिक, ऐसे अल्फाज़ का इस्तेमाल न किया जाये जिससे औरों को दिली या दिमागी तकलीफ पहुंचे और जिनसे शर पसंद अनासिर को फि़तना-फसाद बरपा करने का जवाज़ मिल सके।